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Shung Vansh

शुंग राजवंश

शुंगकालीन संस्कृति के प्रमुख तथ्य

शुंग राजाओं का काल वैदिक अथवा ब्राह्मण धर्म का पुनर्जागरण काल माना जाता है।

मानव आकृतियों के अंकन में कुशलता दिखायी गयी है। एक चित्र में गरुङ सूर्य तथा दूसरे में श्रीलक्ष्मी का अंकन अत्यन्त कलापूर्ण है।

पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान किया। शुंग के सर्वोत्तम स्मारक स्तूप हैं।

बोधगया के विशाल मन्दिर के चारों और एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है।इसका निर्माण भी शुंगकाल में हुआ था। इसमें कमल, राजा, रानी, पुरुष, पशु , बोधिवृक्ष, छ्त्र, त्रिरत्न , कल्पवृक्ष,आदि प्रमुख हैं।

स्वर्ण मुद्रा निष्क, दिनार, सुवर्ण , मात्रिक कहा जाता था। ताँबे के सिक्केव काषार्पण कहलाते थे। चाँदी के सिक्केर के लिए ‘पुराण’अथवा ‘धारण’ शब्द आया है।

शुंग काल में समाज में बाल विवाह का प्रचलन हो गया था। तथा कन्याओं का विवाह आठ से १२ वर्ष की आयु में किया जाने लगा था।

शुंग राजाओं का काल वैदिक काल की अपेक्षा एक बड़े वर्ग के लोगों के मस्तिष्क परम्परा, संस्कृति एवं विचारधारा को प्रतिबिम्बित कर सकने में अधिक समर्थ है।

शुंग काल के उत्कृष्ट नमूने बिहार के बोधगया से प्राप्त होते हैं। भरहुत ,सांची ,बेसनगर की कला भी उत्कृष्ट है।

महाभाष्य के अलावा मनुस्मृति का मौजूदा स्वरुप सम्भवतः इसी युग में रचा गया था। विद्वानो के अनुसार शुंग काल में ही महाभारत के शान्तिपूर्ण तथा अश्वामेध का भी परिवर्तन हुआ। माना जाता है की पुष्यमित्र ने बौद्ध धर्मावलम्बियों पर बहुत अत्याचार किया, लेकिन सम्भवतः इसका कारण बौद्धों द्वारा विदेशी आक्रमण अर्थात यवनों की मदद करना था। पुष्यमित्र ने अशोक द्वारा निर्माण करवाये गये 84 हजार स्तूपों को नष्ट करवाया। बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार यह भी सच है कि उसने कुछ बौद्धों को अपना मन्त्री नियुक्तर कर रखा था। पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक शासन किया। इस प्रकार उसका काल ई.पू से 148 ई.पू.तक माना जाता है।

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