`कबीर' निज घर प्रेम का, मारग अगम अगाध |
सीस उतारि पग तलि धरै, तब निकट प्रेम का स्वाद ||9||
भावार्थ - कबीर कहते हैं -अपना खुद का घर तो इस जीवात्मा का प्रेम ही है |
मगर वहाँ तक पहुँचने का रास्ता बड़ा विकट है, और लम्बा इतना कि
उसका कहीं छोर ही नहीं मिल रहा | प्रेम रस का स्वाद तभी सुगम हो सकता है,
जब कि अपने सिर को उतारकर उसे पैरों के नीचे रख दिया जाय |
प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न हाटि बिकाइ |
राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ ||10||
भावार्थ - अरे भाई ! प्रेम खेतों में नहीं उपजता, और न हाट-बाजार में बिका करता है
यह महँगा है और सस्ता भी - यों कि राजा हो या प्रजा, कोई भी उसे सिर
देकर खरीद ले जा सकता है |
`कबीर' घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार |
ग्यान खड़ग गहि काल सिरि, भली मचाई मार ||11||
भावार्थ - कबीर कहते हैं -
क्या ही मार-धाड़ मचा दी है इस चेतन शूरवीर ने |सवार हो गया है प्रेम के
घोड़े पर | तलवार ज्ञान की ले ली है, और काल-जैसे शत्रु के सिर पर वह चोट-
पर-चोट कर रहा है |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217