मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-13

पेज-128

सहसा मिर्जा एक छलांग मारते हैं और मेहता की कमर पकड़ लेते हैं। मेहता अपने को छुड़ाने के लिए जोर मार रहे हैं। मिर्जा को पाली की तरफ खींचे लिए आ रहे हैं। लोग उन्मत्त हो जाते हैं। अब इसका पता चलना मुश्किल है कि कौन खिलाड़ी है, कौन तमाशाई। सब एक में गडमड हो गए हैं। मिर्जा और मेहता में मल्लयुद्द हो रहा है। मिर्जा के कई बुड्ढे मेहता की तरफ लपके और उनसे लिपट गए। मेहता जमीन पर चुपचाप पड़े हुए हैं, अगर वह किसी तरह खींच-खाँच कर दो हाथ और ले जायँ, तो उनके पचासों आदमी जी उठते हैं, मगर एक वह इंच भी नहीं खिसक सकते। मिर्जा उनकी गर्दन पर बैठे हुए हैं। मेहता का मुख लाल हो रहा है। आँखें बीर-बहूटी बनी हुई हैं। पसीना टपक रहा है, और मिर्जा अपने स्थूल शरीर का भार लिए उनकी पीठ पर हुमच रहे हैं।

मालती ने समीप जा कर उत्तेजित स्वर में कहा - मिर्जा खुर्शेद, यह फेयर नहीं है। बाजी ड्रान रही।

खुर्शेद ने मेहता की गर्दन पर एक घस्सा लगा कर कहा - जब तक यह 'चीं' न बोलेंगे, मैं हरगिज न छोड़ूँगा। क्यों नहीं 'चीं'' बोलते?

मालती और आगे बढ़ी - 'चीं' बुलाने के लिए आप इतनी जबरदस्ती नहीं कर सकते।

मिर्जा ने मेहता की पीठ पर हुमच कर कहा - बेशक कर सकता हूँ। आप इनसे कह दें, 'चीं'' बोलें, मैं अभी उठा जाता हूँ।

मेहता ने एक बार फिर उठने की चेष्टा की, पर मिर्जा ने उनकी गर्दन दबा दी।

मालती ने उनका हाथ पकड़ कर घसीटने की कोशिश करके कहा - यह खेल नहीं, अदावत है।

'अदावत ही सही।'

'आप न छोड़ेंगे?'

उसी वक्त जैसे कोई भूकंप आ गया। मिर्जा साहब जमीन पर पड़े हुए थे और मेहता दौड़े हुए पाली की ओर भागे जा रहे थे और हजारों आदमी पागलों की तरह टोपियाँ और पगड़ियाँ और छड़ियाँ उछाल रहे थे। कैसे यह कायापलट हुई, कोई समझ न सका।

मिर्जा ने मेहता को गोद में उठा लिया और लिए हुए शामियाने तक आए। प्रत्येक मुख पर यह शब्द थे - डाक्टर साहब ने बाजी मार ली। और प्रत्येक आदमी इस हारी हुई बाजी के एकबारगी पलट जाने पर विस्मित था। सभी मेहता के जीवट और दम और धैर्य का बखान कर रहे थे।

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top