कुछ और बातें करके पुनिया आग ले कर चली गई। होरी सब कुछ देख रहा था। भीतर आ कर बोला - पुनिया दिल की साफ है। 'हीरा भी तो दिल का साफ था?' धनिया ने अनाज तो रख लिया था, पर मन में लज्जित और अपमानित हो रही थी। यह दिनों का फेर है कि आज उसे यह नीचा देखना पड़ा। 'तू किसी का औसान नहीं मानती, यही तुझमें बुराई है।' 'औसान क्यों मानूँ? मेरा आदमी उसकी गिरस्ती के पीछे जान नहीं दे रहा है? फिर मैंने दान थोड़े ही लिया है। उसका एक-एक दाना भर दूँगी।' मगर पुनिया अपने जिठानी के मनोभाव समझ कर भी होरी का एहसान चुकाती जाती थी। जब अनाज चुक जाता, मन-दो-मन दे जाती, मगर जब चौमासा आ गया और वर्षा न हुई तो समस्या अत्यंत जटिल हो गई। सावन का महीना आ गया था और बगुले उठ रहे थे। कुओं का पानी भी सूख गया था और ऊख ताप से जली जा रही थी। नदी से थोड़ा-थोड़ा पानी मिलता था, मगर उसके पीछे आए दिन लाठियाँ निकलती थीं। यहाँ तक कि नदी ने भी जवाब दे दिया। जगह-जगह चोरियाँ होने लगीं, डाके पड़ने लगे। सारे प्रांत में हाहाकार मच गया। बारे कुशल हुई कि भादों में वर्षा हो गई और किसानों के प्राण हरे हुए। कितना उछाह था उस दिन! प्यासी पृथ्वी जैसे अघाती ही न थी और प्यासे किसान ऐसे उछल रहे थे, मानो पानी नहीं, अशर्फियाँ बरस रही हों। बटोर लो, जितना बटोरते बने। खेतों में जहाँ बगुले उठते थे, वहाँ हल चलने लगे। बालवृंद निकल-निकल कर तालाबों और पोखरों और गड़हियों का मुआयना कर रहे थे। ओहो! तालाब तो आधा भर गया, और वहाँ से गड़हिया की तरफ दौड़े। मगर अब कितना ही पानी बरसे, ऊख तो विदा हो गई। एक-एक हाथ की होके रह जायगी, मक्का और जुआर और कोदों से लगान थोड़े ही चुकेगा, महाजन का पेट थोड़े ही भरा जायगा। हाँ, गौओं के लिए चारा हो गया और आदमी जी गया। जब माघ बीत गया और भोला के रुपए न मिले, तो एक दिन वह झल्लाया हुआ होरी के घर आ धमका और बोला - यही है तुम्हारा कौल? इसी मुँह से तुमने ऊख पेर कर मेरे रुपए देने का वादा किया था? अब तो ऊख पेर चुके। लाओ रुपए मेरे हाथ में। होरी जब अपने विपत्ति सुना कर और सब तरह से चिरौरी करके हार गया और भोला द्वार से न हटा, तो उसने झुँझला कर कहा - तो महतो, इस बखत तो मेरे पास रुपए नहीं हैं और न मुझे कहीं उधार ही मिल सकता है। मैं कहाँ से लाऊँ? दाने-दाने की तंगी हो रही है। बिस्वास न हो, घर में आ कर देख लो। जो कुछ मिले, उठा ले जाओ। भोला ने निर्मम भाव से कहा - मैं तुम्हारे घर में क्यों तलासी लेने जाऊँ और न मुझे इससे मतलब है कि तुम्हारे पास रुपए हैं या नहीं। तुमने ऊख पेर कर रुपए देने को कहा था। ऊख पेर चुके। अब रुपए मेरे हवाले करो। 'तो फिर जो कहो, वह करूँ?' 'मैं क्या कहूँ ?' 'मैं तुम्हीं पर छोड़ता हूँ।' 'मैं तुम्हारे दोनों बैल खोल ले जाऊँगा।'
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