वह उसी आवेश में चला था कि झुनिया ने पकड़ लिया और बोली - तो चले जाना, अभी ऐसी क्या जल्दी है? कुछ आराम कर लो, कुछ खा-पी लो। सारा दिन तो पड़ा है। यहाँ बड़ी-बड़ी पंचायत हुई। पंचायत ने अस्सी रुपए डाँड़ के लगाए। तीस मन अनाज ऊपर। उसी में तो और तबाही आ गई। सोना बालक को कपड़े-जूते पहना कर लाई। कपड़े पहन कर वह जैसे सचमुच राजा हो गया था। गोबर ने उसे गोद में ले लिया, पर इस समय बालक के प्यार में उसे आनंद न आया। उसका रक्त खौल रहा था और कमर के रुपए आँच और तेज कर रहे थे। वह एक-एक से समझेगा। पंचों को उस पर डाँड़ लगाने का अधिकार क्या है? कौन होता है कोई उसके बीच में बोलने वाला? उसने एक औरत रख ली, तो पंचों के बाप का क्या बिगाड़ा? अगर इसी बात पर वह फौजदारी में दावा कर दे, तो लोगों के हाथों में हथकड़ियाँ पड़ जाएँ। सारी गृहस्थी तहस-नहस हो गई। क्या समझ लिया है उसे इन लोगों ने। बच्चा उसकी गोद में जरा-सा मुस्कराया, फिर जोर से चीख उठा, जैसे कोई डरावनी चीज देख ली हो। झुनिया ने बच्चे को उसकी गोद से ले लिया और बोली - अब जा कर नहा-धो लो। किस सोच में पड़ गए? यहाँ सबसे लड़ने लगो, तो एक दिन निबाह न हो। जिसके पास पैसे हैं, वही बड़ा आदमी है, वही भला आदमी है। पैसे न हों, तो उस पर सभी रोब जमाते हैं। 'मेरा गधापन था कि घर से भागा, नहीं देखता, कैसे कोई एक धेला डाँड़ लेता है।' 'शहर की हवा खा आए हो, तभी ये बातें सूझने लगी हैं, नहीं घर से भागते ही क्यों!' 'यही जी चाहता है कि लाठी उठाऊँ और पटेश्वरी, दातादीन, झिंगुरी, सब सालों को पीट कर गिरा दूँ और उनके पेट से रुपए निकाल लूँ।'
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