गोबर उस गाँव में पहुँचा तो देखा, कुछ लोग बरगद के नीचे बैठे जुआ खेल रहे हैं। उसे देख कर लोगों ने समझा, पुलिस का सिपाही है। कौड़ियाँ समेट कर भागे कि सहसा जंगी ने उसे पहचान कर कहा - अरे, यह तो गोबरधन है। गोबर ने देखा, जंगी पेड़ की आड़ में खड़ा झाँक रहा है। बोला - डरो, मत जंगी भैया, मैं हूँ। राम-राम आज ही आया हूँ। सोचा, चलूँ सबसे मिलता आऊँ, फिर न जाने कब आना हो। मैं तो भैया, तुम्हारे आसिरवाद से बड़े मजे में निकल गया। जिस राजा की नौकरी में हूँ, उन्होंने मुझसे कहा - है कि एक-दो आदमी मिल जाएँ तो लेते आना। चौकीदारी के लिए चाहिए। मैंने कहा - सरकार ऐसे आदमी दूँगा कि चाहे जान चली जाय, मैदान से हटने वाले नहीं, इच्छा हो तो मेरे साथ चलो। अच्छी जगह है। जंगी उसका ठाट-बाट देख कर रोब में आ गया। उसे कभी चमरौधे जूते भी मयस्सर न हुए थे। और गोबर चमाचम बूट पहने था। साफ-सुथरी, धारीदार कमीज, सँवारे हुए बाल, पूरा बाबू साहब बना हुआ। फटे हाल गोबर और इस परिष्कृत गोबर में बड़ा अंतर था। हिंसा-भाव तो यों ही समय के प्रभाव से शांत हो गया था और बचा-खुचा अब शांत हो गया। जुआरी था ही, उस पर गाँजे की लत। और घर में बड़ी मुश्किल से पैसे मिलते थे। मुँह में पानी भर आया। बोला - चलूँगा क्यों नहीं, यहाँ पड़ा-पड़ा मक्खी ही तो मार रहा हूँ। कै रुपए मिलेंगे? गोबर ने बड़े आत्मविश्वास से कहा - इसकी कुछ चिंता मत करो। सब कुछ अपने ही हाथ में है। जो चाहोगे, वह हो जायगा। हमने सोचा, जब घर में ही आदमी है, तो बाहर क्यों जाएँ? जंगी ने उत्सुकता से पूछा - काम क्या करना पड़ेगा? 'काम चाहे चौकीदारी करो, चाहे तगादे पर जाओ। तगादे का काम सबसे अच्छा। असामी से गठ गए। आ कर मालिक से कह दिया, घर पर मिला ही नहीं, चाहो तो रुपए-आठ आने रोज बना सकते हो।' 'रहने की जगह भी मिलती है।' 'जगह की कौन कमी - पूरा महल पड़ा है। पानी का नल, बिजली। किसी बात की कमी नहीं है। कामता हैं कि कहीं गए हैं?'
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