मेहता ने उनका चेहरा और उनकी चेष्टा देखी और घबरा कर बोले - चलिए, आपको घर पहुँचा दूँ। आपकी तबीयत अच्छी नहीं है। खन्ना ने कहकहा मार कर कहा - मेरी तबीयत अच्छी नहीं है। इसलिए कि मिल जल गई। ऐसी मिलें मैं चुटकियों में खोल सकता हूँ। मेरा नाम खन्ना है, चंद्रप्रकाश खन्ना! मैंने अपना सब कुछ इस मिल में लगा दिया। पहली मिल में हमने बीस प्रतिशत नफा दिया। मैंने प्रोत्साहित हो कर यह मिल खोली। इसमें आधे रुपए मेरे हैं। मैंने बैंक के दो लाख इस मिल में लगा दिए। मैं एक घंटा नहीं, आधा घंटा पहले दस लाख का आदमी था। जी हाँ, दस, मगर इस वक्त फाकेमस्त हूँ - नहीं दिवालिया हूँ! मुझे बैंक को दो लाख देना है। जिस मकान में रहता हूँ, वह अब मेरा नहीं है। जिस बर्तन में खाता हूँ, वह भी अब मेरा नहीं! बैंक से मैं निकाल दिया जाऊँगा। जिस खन्ना को देख कर लोग जलते थे, वह खन्ना अब धूल में मिल गया है। समाज में अब मेरा कोई स्थान नहीं है, मेरे मित्र मुझे अपने विश्वास का पात्र नहीं, दया का पात्र समझेंगे। मेरे शत्रु मुझसे जलेंगे नहीं, मुझ पर हँसेंगे। आप नहीं जानते मिस्टर मेहता, मैंने अपने सिद्धांतों की कितनी हत्या की है। कितनी रिश्वतें दी हैं, कितनी रिश्वतें ली हैं। किसानों की ऊख तौलने के लिए कैसे आदमी रखे, कैसे नकली बाट रखे। क्या कीजिएगा, यह सब सुन कर, लेकिन खन्ना अपनी यह दुर्दशा कराने के लिए क्यों जिंदा रहे? जो कुछ होना है हो, दुनिया जितना चाहे हँसे, मित्र लोग जितना चाहें अफसोस करें, लोग जितनी गालियाँ देना चाहें, दें। खन्ना अपनी आँखों से देखने और अपने कानों से सुनने के लिए जीता न रहेगा। वह बेहया नहीं है, बेगैरत नहीं है! यह कहते-कहते खन्ना दोनों हाथों से सिर पीट कर जोर-जोर से रोने लगे। मेहता ने उन्हें छाती से लगा कर दुखित स्वर में कहा - खन्ना जी, जरा धीरज से काम लीजिए। आप समझदार हो कर दिल इतना छोटा करते हैं। दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। आप निर्धन रह कर भी मित्रों के विश्वासपात्र रह सकते हैं और शत्रुओं के भी, बल्कि तब कोई आपका शत्रु रहेगा ही नहीं। आइए, घर चलें। जरा आराम कर लेने से आपका चित्त शांत हो जायगा। खन्ना ने कोई जवाब न दिया। तीनों आदमी चौरास्ते पर आए। कार खड़ी थी। दस मिनट में खन्ना की कोठी पर पहुँच गए।
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