खन्ना ने उतर कर शांत स्वर में कहा - कार आप ले जायँ। अब मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मालती और मेहता भी उतर पड़े। मालती ने कहा - तुम चल कर आराम से लेटो, हम बैठे गप-शप करेंगे। घर जाने की तो ऐसी कोई जल्दी नहीं है। खन्ना ने कृतज्ञता से उसकी ओर देखा और करुण-कंठ से बोले - मुझसे जो अपराध, हुए हैं, उन्हें क्षमा कर देना मालती! तुम और मेहता, बस तुम्हारे सिवा संसार में मेरा कोई नहीं है। मुझे आशा है, तुम मुझे अपनी नजरों से न गिराओगी। शायद दस-पाँच दिन में यह कोठी भी छोड़नी पडे। किस्मत ने कैसा धोखा दिया! मेहता ने कहा - मैं आपसे सच कहता हूँ खन्ना जी, आज मेरी नजरों में आपकी जो इज्जत है, वह कभी न थी। तीनों आदमी कमरे में दाखिल हुए। द्वार खुलने की आहट पाते ही गोविंदी भीतर से आ कर बोली - क्या आप लोग वहीं से आ रहे हैं? महराज तो बड़ी बुरी खबर लाया है। खन्ना के मन में ऐसा प्रबल, न रुकने वाला, तूफानी आवेग उठा कि गोविंदी के चरणों पर गिर पड़ें और उन्हें आँसुओं से धो दें। भारी गले से बोले - हाँ प्रिए, हम तबाह हो गए। उनकी निर्जीव, निराश आहत आत्मा सांत्वना के लिए विकल हो रही थी, सच्ची स्नेह में डूबी हुई सांत्वना के लिए - उस रोगी की भाँति, जो जीवन-सूत्र क्षीण हो जाने पर भी वैद्य के मुख की ओर आशा-भरी आँखों से ताक रहा हो। वही गोविंदी जिस पर उन्होंने हमेशा जुल्म किया, जिसका हमेशा अपमान किया, जिससे हमेशा बेवफाई की, जिसे सदैव जीवन का भार समझा, जिसकी मृत्यु की सदैव कामना करते रहे, वही इस समय जैसे अंचल में आशीर्वाद और मंगल और अभय लिए उन पर वार रही थी, जैसे उन चरणों में ही उसके जीवन का स्वर्ग हो, जैसे वह उनके अभागे मस्तक पर हाथ रख कर ही उनकी प्राणहीन धमनियों में फिर रक्त का संचार कर देगी। मन की इस दुर्बल दशा में, घोर विपत्ति में, मानो वह उन्हें कंठ से लगा लेने के लिए खड़ी थी। नौका पर बैठे हुए जल-विहार करते समय हम जिन चट्टानों को घातक समझते हैं, और चाहते हैं कि कोई इन्हें खोद कर फेंक देता, उन्हीं से, नौका टूट जाने पर, हम चिमट जाते हैं।
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