मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-31

पेज-316

मगर इस चोट की प्रतिक्रिया भी तुरंत हुई। हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा न रख कर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न हो कर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है। रायसाहब को यह जिद पड़ गई कि रुद्रपाल का विवाह सरोज के साथ न होने पाए, चाहे इसके लिए उन्हें पुलिस की मदद क्यों न लेनी पड़े, नीति की हत्या क्यों न करनी पड़े।

उन्होंने जैसे तलवार खींच कर कहा - हाँ, मेरे बाद ही होगी और अभी उसे बहुत दिन हैं।

रुद्रपाल ने जैसे गोली चला दी - ईश्वर करे, आप अमर हों! सरोज से मेरा विवाह हो चुका।

'झूठ।'

'बिलकुल नहीं, प्रमाण-पत्र मौजूद है।'

रायसाहब आहत हो कर गिर पड़े। इतनी सतृष्ण हिंसा की आँखों से उन्होंने कभी किसी शत्रु को न देखा था। शत्रु अधिक-से-अधिक उनके स्वार्थ पर आघात कर सकता था या देह पर या सम्मान पर, पर यह आघात तो उस मर्मस्थल पर था, जहाँ जीवन की संपूर्ण प्रेरणा संचित थी। एक आँधी थी, जिसने उनका जीवन जड़ से उखाड़ दिया। अब वह सर्वथा अपंग है। पुलिस की सारी शक्ति हाथ में रहते हुए भी अपंग है। बल प्रयोग उनका अंतिम शस्त्र था। वह शस्त्र उनके हाथ से निकल चुका था। रुद्रपाल बालिग है, सरोज भी बालिग है और रुद्रपाल अपनी रियासत का मालिक है। उनका उस पर कोई दबाव नहीं। आह! अगर जानते, यह लौंडा यों विद्रोह करेगा, तो इस रियासत के लिए लड़ते ही क्यों? इस मुकदमेबाजी के पीछे दो-ढाई लाख बिगड़ गए। जीवन ही नष्ट हो गया। अब तो उनकी लाज इसी तरह बचेगी कि इस लौंडे की खुशामद करते रहें, उन्होंने जरा बाधा दी और इज्जत धूल में मिली। वह अपने जीवन का बलिदान करके भी अब स्वामी नहीं हैं। ओह! सारा जीवन नष्ट हो गया। सारा जीवन!

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top