मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-4

पेज-35

'हाँ, इसके लौटा देने में ही कुसल है।'

'क्यों बात क्या है - इतने अरमान से लाए और अब लौटाने जा रहे हो? क्या भोला रुपए माँगते हैं?

'नहीं, भोला यहाँ कब आया।'

'तो फिर क्या बात हुई।'

'क्या करोगी पूछ कर?'

धनिया ने लपक कर पगहिया उसके हाथ से छीन ली। उसकी चपल बुद्धि ने जैसे उड़ती हुई चिड़िया पकड़ ली। बोली - तुम्हें भाइयों का डर हो, तो जा कर उनके पैरों पर गिरो। मैं किसी से नहीं डरती। अगर हमारी बढ़ती देख कर किसी की छाती फटती है, तो फट जाय, मुझे परवाह नहीं है।

होरी ने विनीत स्वर में कहा - धीरे-धीरे बोल महरानी! कोई सुने, तो कहे, ये सब इतनी रात गए लड़ रहे हैं! मैं अपने कानों से क्या सुन आया हूँ, तू क्या जाने! यहाँ चरचा हो रही है कि मैंने अलग होते समय रुपए दबा लिए थे और भाइयों को धोखा दिया था, यही रुपए अब निकल रहे हैं।'

'हीरा कहता होगा?'

'सारा गाँव कह रहा है। हीरा को क्यों बदनाम करूँ।'

'सारा गाँव नहीं कह रहा है, अकेला हीरा कह रहा है। मैं अभी जा कर पूछती हूँ न कि तुम्हारे बाप कितने रुपए छोड़ कर मरे थे? डाढ़ीजारों के पीछे हम बरबाद हो गए। सारी जिंदगी मिट्टी में मिला दी, पाल-पोस कर संडा किया, और अब हम बेईमान हैं। मैं कह देती हूँ, अगर गाय घर के बाहर निकली, तो अनर्थ हो जायगा। रख लिए हमने रुपए, दबा लिए, बीच खेत दबा लिए। डंके की चोट कहती हूँ, मैंने हंडे भर असर्फियाँ छिपा लीं। हीरा और सोभा और संसार को जो करना हो, कर ले। क्यों न रुपए रख लें? दो-दो संडों का ब्याह नहीं किया, गौना नहीं किया?'

होरी सिटपिटा गया। धनिया ने उसके हाथ से पगहिया छीन ली, और गाय को खूँटे से बाँध कर द्वार की ओर चली। होरी ने उसे पकड़ना चाहा, पर वह बाहर जा चुकी थी। वहीं सिर थाम कर बैठ गया। बाहर उसे पकड़ने की चेष्टा करके वह कोई नाटक नहीं दिखाना चाहता था। धनिया के क्रोध को खूब जानता था। बिगड़ती है, तो चंडी बन जाती है। मारो, काटो, सुनेगी नहीं, लेकिन हीरा भी तो एक ही गुस्सेवर है, कहीं हाथ चला दे तो परलै ही हो जाए। नहीं, हीरा इतना मूरख नहीं है। मैंने कहाँ-से-कहाँ यह आग लगा दी! उसे अपने आप पर क्रोध आने लगा। बात मन में रख लेता, तो क्यों यह टंटा खड़ा होता। सहसा धनिया का कर्कश स्वर कान में आया। हीरा की गरज भी सुन पड़ी। फिर पुन्नी की पैनी पीक भी कानों में चुभी। सहसा उसे गोबर की याद आई। बाहर लपक कर उसकी खाट देखी। गोबर वहाँ न था। गजब हो गया। गोबर भी वहाँ पहुँच गया। अब कुशल नहीं। उसका नया खून है, न जाने क्या कर बैठे, लेकिन होरी वहाँ कैसे जाय? हीरा कहेगा, आप तो बोलते नहीं, जा कर इस डाइन को लड़ने के लिए भेज दिया। कोलाहल प्रतिक्षण प्रचंड होता जाता था। सारे गाँव में जाग पड़ गई। मालूम होता था, कहीं आग लग गई है, और लोग खाट से उठ-उठ बुझाने दौड़े जा रहे हैं।

 

 

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