मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-4

पेज-36

इतनी देर तक तो वह जब्त किए बैठा रहा। फिर न रहा गया। धनिया पर क्रोध आया। वह क्यों चढ़ कर लड़ने गई? अपने घर में आदमी न जाने किसको क्या कहता है। जब तक कोई मुँह पर बात न कहे, यही समझना चाहिए कि उसने कुछ नहीं कहा। होरी की कृषक प्रकृति झगड़े से भागती थी। चार बातें सुन कर गम खा जाना इससे कहीं अच्छा है कि आपस में तनाजा हो। कहीं मार-पीट हो जाय तो थाना-पुलिस हो, बँधे-बँधे फिरो, सबकी चिरौरी करो, अदालत की धूल फाँको, खेती-बारी जहन्नुम में मिल जाए। उसका हीरा पर तो कोई बस न था, मगर धनिया को तो वह जबरदस्ती खींच ला सकता है। बहुत होगा, गालियाँ दे लेगी, एक-दो दिन रुठी रहेगी, थाना-पुलिस की नौबत तो न आएगी। जा कर हीरा के द्वार पर सबसे दूर दीवार की आड़ में खड़ा हो गया। एक सेनापति की भाँति मैदान में आने के पहले परिस्थिति को अच्छी तरह समझ लेना चाहता था। अगर अपने जीत हो रही है, तो बोलने की कोई जरूरत नहीं, हार हो रही है, तो तुरंत कूद पड़ेगा। देखा तो वहाँ पचासों आदमी जमा हो गए हैं। पंडित दातादीन, लाला पटेश्वरी, दोनों ठाकुर, जो गाँव के करता-धरता थे, सभी पहुँचे हुए हैं। धनिया का पल्ला हल्का हो रहा था। उसकी उग्रता जनमत को उसके विरुद्ध किए देती थी। वह रणनीति में कुशल न थी। क्रोध में ऐसी जली-कटी सुना रही थी कि लोगों की सहानुभूति उससे दूर होती जाती थी।

वह गरज रही थी - तू हमें देख कर क्यों जलता है? हमें देख कर क्यों तेरी छाती फटती है? पाल-पोस कर जवान कर दिया, यह उसका इनाम है? हमने न पाला होता तो आज कहीं भीख माँगते होते। ईख की छाँह भी न मिलती।

होरी को ये शब्द जरूरत से ज्यादा कठोर जान पड़े। भाइयों का पालना-पोसना तो उसका धर्म था। उनके हिस्से की जायदाद तो उसके हाथ में थी। कैसे न पालता-पोसता? दुनिया में कहीं मुँह देखाने लायक रहता?

हीरा ने जवाब दिया - हम किसी का कुछ नहीं जानते। तेरे घर में कुत्तों की तरह एक टुकड़ा खाते थे और दिन-दिन भर काम करते थे। जाना ही नहीं कि लड़कपन और जवानी कैसी होती है। दिन-दिन भर सूखा गोबर बीना करते थे। उस पर भी तू बिना दस गाली दिए रोटी न देती थी। तेरी-जैसी राच्छसिन के हाथ में पड़ कर जिंदगी तलख हो गई।

धनिया और भी तेज हुई - जबान सँभाल, नहीं जीभ खींच लूँगी। राच्छसिन तेरी औरत होगी। तू है किस फेर में मूँड़ी-काटे, टुकड़े-खोर, नमक-हराम।

दातादीन ने टोका - इतना कटु वचन क्यों कहती है धनिया? नारी का धरम है कि गम खाय। वह तो उजड्ड है, क्यों उसके मुँह लगती है?

लाला पटेश्वरी पटवारी ने उसका समर्थन किया - बात का जवाब बात है, गाली नहीं। तूने लड़कपन में उसे पाला-पोसा, लेकिन यह क्यों भूल जाती है कि उसकी जायदाद तेरे हाथ में थी?

धनिया ने समझा, सब-के-सब मिल कर मुझे नीचा दिखाना चाहते हैं। चौमुख लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गई - अच्छा, रहने दो लाला! मैं सबको पहचानती हूँ। इस गाँव में रहते बीस साल हो गए। एक-एक की नस-नस पहचानती हूँ। मैं गाली दे रही हूँ, वह फूल बरसा रहा है, क्यों?

 

 

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