मुंशी प्रेमचंद - कर्मभूमि

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कर्मभूमि

दूसरा भाग - दो

पेज- 100

चौधरी प्रसन्न होकर बोले-तब तो भैया, हम तुम्हें न जाने देंगे। बाल-बच्चों को बुला लो और यहीं रहो। हमारे बाल-बच्चे भी कुछ पढ़ जाएंगे। फिर सहर भेज देंगे। वहां जात-पांत-बिरादरी कौन पूछता है। लिखा दिया हम छत्तारी हैं।
अमर मुस्कराया-और जो पीछे से भेद खुल गया-
चौधरी का जवाब तैयार था-तो हम कह देंगे, हमारे पुरबज छत्तारी थे, हालांकि अपने को छत्तारी-बंस कहते लाज आती है। सुनते हैं, छत्तारी लोगों ने मुसलमान बादशाहों को अपनी बेटियां ब्याही थीं। अभी कुछ जलपान तो न किया होगा, भैया- कहां गया तेजा जा, बहू से कुछ जलपान करने को ले आ। भैया, भगवान् का नाम लेकर यहीं टिक जाओ। तीन-चार बीघे सलोनी के पास है। दो बीघे हमारे साझे कर लेना। इतना बहुत है। भगवान् दें तो खाए न चुके।
लेकिन जब सलोनी बुलाई गई और उससे चौधरी ने यह प्रस्ताव किया, तो वह बिचक उठी। कठोर मुद्रा से बोली-तुम्हारी मंसा है, अपनी जमीन इनके नाम करा दूं और मैं हवा खाऊं, यही तो-
चौधरी ने हंसकर कहा-नहीं-नहीं, जमीन तेरे ही नाम रहेगी, पगली यह तो खाली जोतेंगे। यही समझ ले कि तू इन्हें बटाई पर दे रही है।
सलोनी ने कानों पर हाथ रखकर कहा-भैया, अपनी जगह-जमीन मैं किसी के नाम नहीं लिखती। यों हमारे पाहुने हैं, दो-चार-दस दिन रहें। मुझसे जो कुछ होगा, सेवा-सत्कार करूंगी। तुम बटाई पर लेते हो, तो ले लो। जिसको कभी देखा न सुना, न जान न पहचान, उसे कैसे बटाई पर दे दूं-
पयाग ने चौधरी की ओर तिरस्कार-भाव से देखकर कहा-भर गया मन, या अभी नहीं। कहते हो औरतें मूरख होती हैं। यह चाहें हमको-तुमको खड़े-खड़े बेच लावें। सलोनी काकी मुंह की ही मीठी हैं।
सलोनी तिनक उठी-हां जी, तुम्हारे कहने से अपने पुरखों की जमीन छोड़ दूं। मेरे ही पेट का लड़का, मुझी को चराने चला है ।
काशी ने सलोनी का पक्ष लिया-ठीक तो कहती हैं, बेजाने-सुने आदमी को अपनी जमीन कैसे सौंप दें-
अमरकान्त को इस विवाद में दार्शनिक आनंद आ रहा था। मुस्कराकर बोला-हां, काकी, तुम ठीक कहती हो। परदेसी आदमी का क्या भरोसा-
मुन्नी भी द्वार पर खड़ी यह बातें सुन रही थी, बोली-पगला गई हो क्या, काकी- तुम्हारे खेत कोई सिर पर उठा ले जाएगा- फिर हम लोग तो हैं ही। जब तुम्हारे साथ कोई कपट करेगा, तो हम पूछेंगे नहीं-
किसी भड़के हुए जानवर को बहुत से आदमी घेरने लगते हैं, तो वह और भी भड़क जाता है। सलोनी समझ रही थी, यह सब-के-सब मिलकर मुझे लुटवाना चाहते हैं। एक बार नाहीं करके, फिर हां न की। वेग से चल खड़ी हुई।

 

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