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मुंशी प्रेमचंद - निर्मला
निर्मला
इक्कीस
पेज- 68
शाम हो गयी थी। थानेदार ने मकान के अगवाड़े-पिछवाड़े घूम-घूमकर देखा। अन्दर जाकर निर्मला के कमरे को गौर से देखा। ऊपर की मुंडेर की जांच की। मुहल्ले के दो-चार आदमियों से चुपके-चुपके कुछ बातें की और तब मुंशीजी से बोले- जनाब, खुदा की कसम, यह किसी बाहर के आदमी का काम नहीं। खुदा की कसम, अगर कोई बाहर की आमदी निकले, तो आज से थानेदारी करना छोड़ दूं। आपके घर में कोई मुलाजिम ऐसा तो नहीं है, जिस पर आपको शुबहा हो।
मुंशीजी- घर मे तो आजकल सिर्फ एक महरी है।
थानेदार-अजी, वह पगली है। यह किसी बड़े शातिर का काम है, खुदा की कसम।
मुंशीजी- तो घर में और कौन है? मेरे दोने लड़के हैं, स्त्री है और बहन है। इनमें से किस पर शक करुं?
थानेदार- खुदा की कसम, घर ही के किसी आदमी का काम है, चाहे, वह कोई हो, इन्शाअल्लाह, दो-चार दिन में मैं आपको इसकी खबर दूंगा। यह तो नहीं कह सकता कि माल भी सब मिल जायेगा, पर खुदा की कसम, चोर जरुर पकड़ दिखाऊंगा।
थानेदार चला गया, तो मुंशीजी ने आकर निर्मला से उसकी बातें कहीं। निर्मला सहम उठी- आप थानेदार से कह दीजिए, तफतीश न करें, आपके पैरों पड़ती हूं।
मुंशीजी- आखिर क्यों?
निर्मला- अब क्यों बताऊं? वह कह रहा है कि घर ही के किसी का काम है।
मुंशीजी- उसे बकने दो।
जियाराम अपने कमरे में बैठा हुआ भगवान् को याद कर रहा था। उसक मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं। सुन चुका थाकि पुलिसवाले चेहरे से भांप जाते हैं। बाहर निकलने की हिम्मत न पड़ती थी। दोनों आदमियों में क्या बातें हो रही हैं, यह जानने के लिए छटपटा रहा था। ज्योंही थानेदार चला गया और भूंगी किसी काम से बाहर निकली, जियाराम ने पूछा-थानेदार क्या कर रहा था भूंगी?
भूंगी ने पास आकर कहा- दाढ़ीजार कहता था, घर ही से किसी आदमी का काम है, बाहर को कोई नहीं है।
जियाराम- बाबूजी ने कुछ नहीं कहा?
भूंगी- कुछ तो नहीं कहा, खड़े ‘हूं-हूं’ करते रहे। घर मे एक भूंगी ही गैर है न! और तो सब अपने ही हैं।
जियाराम- मैं भी तो गैर हूं, तू ही क्यों?
भूंगी- तुम गैर काहे हो भैया?
जियाराम- बाबूजी ने थानेदार से कहा नहीं, घर में किसी पर उनका शुबहा नहीं है।
भूंगी- कुछ तो कहते नहीं सुना। बेचारे थानेदार ने भले ही कहा- भूंगी तो पगली है, वह क्या चोरी करेगी। बाबूजी तो मुझे फंसाये ही देते थे।
जियाराम- तब तो तू भी निकल गयी। अकेला मैं ही रह गया। तू ही बता, तूने मुझे उस दिन घर में देखा था?
भूंगी- नहीं भैया, तुम तो ठेठर देखने गये थे।
जियाराम- गवाही देगी न?
भूंगी- यह क्या कहते हो भैया? बहूजी तफ्तीश बन्द कर देंगी।
जियराम- सच?
भूंगी- हां भैया, बार-बार कहती है कि तफ्तीश न कराओ। गहने गये, जाने दो, पर बाबूजी मानते ही नहीं।
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