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मुंशी प्रेमचंद
वरदान
16 स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय
पेज- 35
चॉँद निकल आया था। उसके उज्ज्वल प्रकाश में पुष्प और पत्ते परम शोभायमान थे। मन्द-मन्द वायु चल रहा था। मोतियों और बेले की सुगन्धि मस्तिषक को सुरभित कर रही थीं। ऐसे समय में विरजन एक रेशमी साड़ी और एक सुन्दर स्लीपर पहिने रविशों में टहलती दीख पड़ी। उसके बदन का विकास फूलों को लज्जित करता था, जान पड़ता था कि फूलों की देवी है। कमलाचरण बोला-आज परिश्रम सफल हो गया।
जैसे कुमकुमे में गुलाब भरा होता है, उसी प्रकार वृजरानी के नयनों में प्रेम रस भरा हुआ था। वह मुसकायी, परन्तु कुछ न बोली।
कमला-मुझ जैसा भाग्यवान मुनष्य संसा में न होगा।
विरजन-क्या मुझसे भी अधिक?
केमला मतवाला हो रहा था। विरजन को प्यार से गले लगा दिया।
कुछ दिनों तक प्रतिदिन का यही नियम रहा। इसी बीच में मनोरंजन की नयी सामग्री उपस्थित हो गयी। राधाचरण ने चित्रों का एक सुन्दर अलबम विरजन के पास भेजा। इसमं कई चित्र चंद्रा के भी थे। कहीं वह बैठी श्यामा को पढ़ा रही है कहीं बैठी पत्र लिख रही है। उसका एक चित्र पुरुष वेष में था। राधाचरण फोटोग्राफी की कला में कुशल थे। विरजन को यह अलबम बहुत भाया। फिर क्या था ? फिर क्या था? कमला को धुन लगी कि मैं भी चित्र खीचूँ। भाई के पास पत्र लिख भेजा कि केमरा और अन्य आवश्यक सामान मेरे पास भेज दीजिये और अभ्यास आरंभ कर दिया। घर से चलते कि स्कूल जा रहा हूँ पर बीच ही में एक पारसी फोटोग्राफर की दूकान पर आ बैठते। तीन-चार मास के परिश्रम और उद्योग से इस कला में प्रवीण हो गये। पर अभी घर में किसी को यह बात मालूम न थी। कई बार विरजन ने पूछा भी; आजकल दिनभर कहाँ रहते हो। छुट्टी के दिन भी नहीं दिख पड़ते। पर कमलाचरण ने हूँ-हां करके टाल दिया।
एक दिन कमलाचरण कहीं बाहर गये हुए थे। विरजन के जी में आया कि लाओ प्रतापचन्द्र को एक पत्र लिख डालूँ; पर बक्सखेला तो चिट्ठी का कागज न था माधवी से कहा कि जाकर अपने भैया के डेस्क में से कागज निकाल ला। माधवी दौड़ी हुई गयी तो उसे डेस्क पर चित्रों का अलबम खुला हुआ मिला। उसने आलबम उठा लिया और भीतर लाकर विरजन से कहा-बहिन! दखों, यह चित्र मिला।
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