जन्म और मृत्युSaurabh Kumar जैसाकि भगवान बुद्ध ने कहा है कि सारे क्म्पोनेन्ट थिंग (वस्तुओं के संघात) नाश के विषय है। परंतु यह भी उतना हीं सत्य है कि तत्व का नाश नहीं होता नहीं तो खुद बुद्ध भी मृत्यु के बाद निर्वाण को प्राप्त न करके समाप्त हो जाते। सब कुछ क्षणभंगुर है। परिवर्तनशील है। साथ मे यह विकास भी है अपनी आध्यात्मिक यात्रा का। जन्म और मृत्यु एक हीं क्षण से जुड़े है। जब घर में एक नया बच्चा आता है तो वह भी कहीं से आता है। कहीं वह भी कुछ जगह खाली करता होगा। वहाँ शून्य पैदा करता होगा। वहाँ कि उदासी यहाँ उत्सव है। अगर इसी इक्वेशन को पलटे तो यहाँ कि उदासी कहीं और पर जश्न है। इस तरह सोचो तो ना हीं किसी का जन्म बहुत उत्सव का कारण है और ना हीं किसी की मृत्यु हीं शोक का कारण है।किसी की मृत्यु उसका अंत नही उसकी अपनी यात्रा का पड़ाव है। जब हमारा वर्तमान यौगिक अस्तित्व अपने मार्ग के लिये छोटा पड़ जाता है तो अस्तित्व का रूप बदल जाता है। अगर हमारी भूमिका कोई है तो यह है कि हम अपने पास के लोगों को उनके विकास मे अपनी मदद दें।लेकिन यह भी दूसरे कि जरूरत के हिसाब से होना चाहिये अपनी प्रवृत्ति के प्रवाह मे नहीं। संगीत कि परम्परा में यह सम है। सम को अक्सर क्रास से दिखाते है। यह जीवन और मृत्यु का एक साथ योग है। इस लिये सम मह्त्वपूर्ण भी है और उत्सव भी। यह निर्वेद या शान्त नहीं है। यह अस्तित्व कि सचेतन अनुभूति है। यह हम सभी के अस्तित्व के अनुभूति का सत्य है। यह ईश्वर के आनंदमयि रूप की अनुभूति है। संसार का अस्तित्व खत्म नहीं होता। मिथ्या हो जाता है। हमारा जीवन इस जगत मे ज्यादा करूणा और स्नेह से भर जाता है।
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