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मधुमति मात:

सौरभ कुमार

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मधुमति मात:

मधुमति मात:
तेरे गात
में स्थित
मैं था।
तेरे गर्भ में
पाता रहा पोषण
और रहा जिंदा
परंतु गर्भनाल
टूटा या छूटा
तू तो रही जिंदा
था मैं भी जिंदा
या हूँ जिंदा
परंतु देख रहा
सड़ना स्वयं का
और करना महसूस
परिवर्तन
सौरभ का सड़ांध में।

 

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

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