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प्रियवदंबा

सौरभ कुमार

(Copyright © Saurabh Kumar)

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उन अश्कों के लिए जो कभी उन आंखों में छलके

प्रियवदंबा

(गांगेय: अम्बा से प्रियवदंबा तक)

पेज 1

1.

साथ चलती हुई गंगा से आचार्य ने कहा-
गंगा देख,
तेरे गांगेय ने जमीन पर अपना पहला कदम बढ़ाया है।

अच्छा है, वो अब जमीन की तपीश का भी सामना करे।

आओ, आ, आs, आ, आओ ना, आता क्यूँ नहीं, आ, आओs, आओss, आओ ना, आते जाओ आओssss.......
(ये तो तुम्हारी शुरूआत है जिन्दगी के तपते रेत पर चलते रहने के लिए, बढ़ते रहने के लिए, जिसकी शुरूआत तुम करोगे परंतु न अंत दूसरा कर पायेगा न तुम कर पाओगे)
आ, आs, आओ नाss,

2.
आचार्य,
एक युद्ध का आचार्य अपने हाथ से सौंदर्य का निर्माण करते हुए आज क्यों गुनगुना रहा है।
आओ गांगेय
एक योद्धा के लिए यह समझ जाना भी अच्छा हीं है। एक योद्धा के लिए सौंदर्य इतना अहम क्यूँ होता है।
एक युवराज के लिए यह तो और भी अहम है कि वह यह जरूर समझे और अनिवार्य युद्ध और प्रेम के बीच क्या है।
और यह महत्वपूर्ण क्यूँ है आचार्य।
एक सैनिक के लिए युद्ध लड़ने न लड़ने का विकल्प नहीं है। उसे सिर्फ और सिर्फ लड़ना होता है। वह केवल अपनी आसक्ति जानता है।
और युवराज के विकल्प क्या है?
युवराज के लिए नहीं है। उनके लिए है जिन्हें व्यवस्था कायम करनी है। शासन को चलानी है। व्यवस्था सिर्फ अपने नियमों के हीं अनुकूल नहीं होती, प्रस्तुत परिस्थिति के भी अनुरूप होती है। एक महत्वपूर्ण बात और है गांगेय।
वो भी क्या है आचार्य।
युवराज सिर्फ भावी शासक हीं नहीं, राजा के अयोग्य निर्णयों को रोकने के लिए चुनौती देने वाला वर्तमान शासक भी है।
तो क्या यह राजा का प्रतिद्वंद्वि होना नहीं है?
यह प्रतिद्वंद्वि होने के लिए नहीं है। युवराज का काम शासन में सहयोग देना है। वह राजा का सहयोगी नहीं। शासन चलाने वाले राजा का सहयोगी है।
क्या एक युवराज द्वंद्व दे सकता है?
दे सकता है, अवश्य दे सकता है, अगर वह अपनी स्वतंत्रता से रूद्ध नहीं होता। अगर वह शासन से बंधा है तो दे सकता है। राजा से बंधने वाले नहीं दे पाते।
सौंदर्य वाली बात आचार्य।
सृष्टि में रस को देखना, जीवन देखना सौंदर्य है।
और प्रेम क्या है आचार्य?
सौंदर्य के जीवन और रस के पीछे ईश्वर को देखना हीं प्रेम है। इन सब के पीछे के मूल्य के उचित महत्व को समझना शासन की नीति के लिए हीं महत्वपूर्ण है।
कई बार इनके संरक्षण के लिए युद्ध का न करना हीं श्रेयष्कर है। कई बार इनके हीं संरक्षण और वृद्धि के लिए युद्ध करना होता है। हिंसा द्वारा भी उतनी हीं सौंदर्य है जितना न करने से उनका क्षरण है।
महत्वपूर्ण इन सबके पर्दे में रहने वाला ईश्वर है।
अब जाओ गांगेय तुम्हारे संगीत का समय हो गया।  

3.
आइए युवराज,
आज आप पिता से मिले और आप की माता जा रहीं है।
सत्य तो ये भी है कि वो एक पुरूष भी हैं और वो एक स्त्री भी हैं। जिनकी अपनी स्वतंत्र जिंदगी है।
क्या आपकी पिता से बात भी हुई।
हाँ, मैंने उनका और राज्य के सुचारू रूप से चलाने में मदद का आश्वासन दिया है। मैंने उन्हें हस्तिनापुर अपनाने का आश्वासन दिया है।
सीमा क्या है, इस राज्य की आप देख लें।
सीमा पर एक शांत, स्थिर, जड़ गौरवशालिनी सौंदर्य के प्रवाह को आते गांगेय ने देखा-

 संगमरमर हो या संगेमरमर*
पत्थर हो या पत्थर की मूरत
*१. सफेद पत्थर ,२. उजाले का साथ

उस प्रवाह ने एक निमेष को देखा और आगे बढ़ गई-

ऐसी भी चाहत नहीं कि तुम्हे चाहूँ
हसरत है एक भरी निगाह तुम्हे देखूँ

 

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