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वरदान
सौरभ कुमार
(Copyright © Saurabh Kumar)
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वरदान
मैं अपने खुले दो हस्त लिए
अकिंचन राह में खड़ा था।
सभी प्रसन्न मुदित खड़े
अपने-अपने 'भाग' हाथ में ले
सराहते 'भाग' में लिप्त थे।
परंतु मेरे वरदान की सीमा न रही
तुम स्वयं आ कर प्रकट हुए
मेरे दो खाली हाथ उस
समय भी तुम्हें प्रणाम
करने को प्रस्तुत थे।
तुम्हारे गले में डालने
वाली दो बाँह मेरे ही थे।
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