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सुपर नेचुरल साइंस ई. एस. पी
सौरभ कुमार
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सुपर नेचुरल साइंस ई. एस. पी
ई. एस. पी का प्रयोग अतीन्द्रिय ज्ञान के संदर्भ में होता है। एफ.बी.आई भी ऐसे लोगों का सहयोग भी लेती है। कुछ मामलों में अप्रत्याशित सफलता मिली तो कुछ असफलता भी। हाँलाकि प्रयोग ई. एस. पी की संभावना को पुष्ट करते हैं। क्योंकि बिना ई.एस. पी के और कोई व्याख्या नहीं है जो सुसंगत हो। हाँलाकि कुछ वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं है क्योंकि उनका मानना है ऐसा संभव नहीं है। वे जिस भौतिकी की बात करते हैं उसमें ऐसा संभव नहीं है। परंतु ई.एस. पी के समर्थक क्वांटम (प्रमाता) भौतिकी का सहारा ले रहे है। प्रमाता भौतिकी हीं ई. एस. पी की व्याख्या कर सकती है।
भारतीय परंपरा वेदांत में हम जीव को पूरे विश्व से संबंधित देखते हैं जो प्रमाता से भी ज्यादा बड़े स्तर की बात करता है। प्रमाता में एक हीं प्रोटॉन दो जगह रह सकता है। परंतु वेदांत में वह सारा एक है। सभी जुड़े हुए हैं।
एक और बात जो महत्वपूर्ण है अमेरिका या पश्चिम इन क्षेत्र में रिसर्च कर रहा है। वह जासूसी के क्षेत्र में भी ई. एस. पी से जुड़े लोग की मदद ले रहा है। परंतु भारत जहाँ इसकी संभावनायें ज्यादा अनुकूल है वह इनसे दूर भागता जा रहा है।
आज पेटेंट और कॉपीराइट जैसे संभव है भारत अपने क्षेत्र, खेल में भी हार जाए। और वे इसके मनमाने उपयोग करें।
अगर भारतीय परंपरा के अनुसार इसे संयोजित किया जाए तो यह ज्योतिष, आयुर्वेद, योग (ध्यान, ई. एस. पी) का समन्वय होगा। भारतीय परंपरा मन की चेतना को प्रकृति प्रदत्त हीं मानती है। परंतु भारतीय परंपरा एक अन्य चेतना भी मानती है जिसे पुरुष कहते हैं, आत्मा तथा जो आनंदमय कोष है।
भौतिक विज्ञान सिर्फ जड़ जानता है और चेतना को भी जड़ से संबधित हीं देखता है जो मन का चेतना हो सकता है। यहीं विज्ञान का परंपरा से द्वंद्व है। इसी कारण अन्य चेतना संभव नहीं है। अगर है तो गलत या विकृति है। या अगर अन्य कुछ हो तो वह उसके लिए सामान्य की जगह अति असामान्य है। यहीं विज्ञान च्क्कर खा रहा है।
अगर भारत को पुनर्जीवित होना है तो उसे अपने पारंपरिक ज्ञान और समझ को जिंदा करना होगा। उसका युगानुकूलन तो बहुत बाद की चीज है। जो है उसी के मुकाबले हम बहुत पीछे चल रहे हैं। अगर वहाँ तक पहुँचे तो उसके बाद अपने आप हम आगे बढ़ने लगेंगे। ज्योतिष केन्द्र है। उसके सहारे हीं परिधि सहज में फैल सकता है।
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