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तेरा नर्त्तन

सौरभ कुमार

(Copyright © Saurabh Kumar)

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तेरा नर्त्तन

हे प्रभु तेरा नर्त्तन।
गर तू है संसार में
या पुरूष-प्रकृति
का नर्त्तन लाजवाब
दिखता मुझे।
चाहूँ दौड़ना
तेरे गोद में
परंतु ना तो
तुझे या संसार
को हीं पाता
हूँ। रह जाता
हूँ ठगा सा।
पर ठगा जाना
हीं मोक्ष है।
यही भाव मुझे
तेरा रूप दिखाता है।

 

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

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