जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ |
आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, हौं बलि जाउँ निछनियाँ ||
मो कारन कछु आन्यौ है बलि, बन-फल तोरि नन्हैया |
तुमहि मिलैं मै अति सुख पायौ, मेरे कुँवर कन्हैया ||
कछुक खाहु जो भावै मोहन, दैरी माखन-रोटी |
सूरदास प्रभु जीवहु जुग-जुग हरिहलधर की जोटी ||
भावार्थ :-- यशोदाजीने दौड़कर श्यामको गोदमें उठा लिया | (बोलीं-)`मेरा लाल! आज
गाय चराने गया था | मैं सर्वथा इसपर बलिहारी जाती हूँ मैं तेरी बलैया लूँ, मेरे
नन्हे लाल ! मेरे लिये भी वनसे कुछ फल तोड़कर लाया है? मेरे कुँवर कन्हाई ! तुमसे
मिलने पर मुझे बहुत सुख मिला | मोहन ! जो भी अच्छा लगे, कुछ खा लो |' (श्याम बोले-)
`मैया मक्खन-रोटी दे|' सूरदासके स्वामी श्याम-बलरामकी यह जोड़ी युग-युग जीवे |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217