राग बिलावल
ग्वाल सखा कर जोरि कहत हैं,
हमहि स्याम! तुम जनि बिसरावहु |
जहाँ-जहाँ तुम देह धरत हौ,
तहाँ-तहाँ जनि चरन छुड़ावहु ||
ब्रज तैं तुमहि कहूँ नहिं टारौं ,
यहै पाइ मैहूँ ब्रज आवत |
यह सुख नहिं कहुँ भुवन चतुर्दस,
इहिं ब्रज यह अवतार बतावत ||
और गोप जे बहुरि चले घर,
तिन सौं कहि ब्रज छाक मँगावत |
सूरदास-प्रभु गुप्त बात सब,
ग्वालनि सौं कहि-कहि सुख पावत ||
भावार्थ :-- गोपसखा हाथ जोड़कर कहते हैं -`श्यामसुन्दर ! तुम हमें कभी भूलना मत |
जहाँ-जहाँ भी तुम शरीर (अवतार) धारण करो, वहाँ-वहाँ हमसे अपने चरण छुड़ा मत लेना
(हमें भी साथ ही रखना)|' (श्रीकृष्णचन्द्र बोले-) `व्रजसे तुमलोगोंको कहीं पृथक
नहीं हटाऊँगा; क्योंकि यही (तुम्हारा साथ) पाकर तो मैं भी व्रजमें आता हूँ | इस
व्रजमें इस अवतारमें जो आनन्द प्राप्त हो रहा है, यह आनन्द चौदहों लोकोंमें कहीं
नहीं है |'
यह मोहन ने बतलाया तथा जो कुछ गोपबालक लौटकर घर जारहे थे, उनसे कहकर `छाक'
(दोपहरका भोजन) मँगवाया | सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी अपने गोप-सखाओं से सब
गुप्त (रहस्यकी) बातें बतला-बतलाकर आनन्द पाते हैं |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217