राग कान्हरौ
अब कैं राखि लेहु गोपाल |
दसहूँ दिसा दुसह दावागिनि, उपजी है इहिं काल ||
पटकत बाँस काँस-कुस चटकत, टकत ताल-तमाल |
उचटत अति अंगार, फुटत फर, झपटत लपट कराल ||
धूम-धूँधि बाढ़ी धर-अंबर, चमकत बिच-बिच ज्वाल |
हरिन बराह, मोर चातक, पक, जरत जीव बेहाल ||
जनि जिय डरहु, नैन मूँदहु सब, हँसि बोले नँदलाल |
सूर अगिनि सब बदन समानी, अभय किए ब्रज-बाल ||
भावार्थ :--
(गोपबालक कहते हैं -) `गोपाल! इस बार रक्षा कर लो | इस समय दसों दिशाओंमें
असह्य दावाग्नि प्रकट हो गयी है | बाँस पटापट शब्द करते फट रहे हैं, जलते कुश एवं
काशसे चटचटाहट हो रही है, ताल और तमालके (बड़े) वृक्ष भी (जलकर) गिर रहे हैं |
बहुत अधिक चिनगारियाँ उछल रही हैं, फलफूट रहे हैं और दारुण लपटें फैल रही हैं |
धुएँका अन्धकार पृथ्वीसे आकाशतक बढ़ गया है, उसके बीच-बीचमें ज्वाला चमक रही है |
हरिन, सूअर, मोर, पपीहे, कोयल आदि जीव बड़ी दुर्दशाके साथ भस्म हो रहे हैं |'
(यह सुनकर) श्रीनन्दलाल हँसकर बोले--`अपने चित्तमें डरो मत ! सब लोग नेत्र बंद कर
लो|'सूरदासजी कहते हैं कि सब अग्नि मेरे प्रभुके मुखमें प्रविष्ट हो गयी, उन्होंने
व्रजके बालकोंको निर्भय कर दिया |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217