सूरदास
परिशिष्ट
पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग
कच्छपावतार
महर्षि दुर्वासाके शापसे इन्द्रकी श्रीनष्ट हो गयी | दैत्योंने आक्रमण करके देवताओं
ने भगवान नारायणकी शरण ली | भगवानने उन्हें दैत्योंसे सन्धि करके क्षीरसमुद्रका
मन्थनसे प्राप्त अमृतमें समान भाग पानेकी आशामें देवताओंसे सन्धि करली | समुद्र
-मन्थनके लिये वे लोग मिलकर मन्दराचलको लाने लगे | जब देवता और दैत्य उस महापर्वतको
ढोनेमें असमर्थ हो गये, तब भगवान् नारायण स्वयं पर्वतको गरुड़पर रखकर ले आये |
क्षीरसमुद्रमें डालने पर वह पर्वत डूबने लगा | देवता-दैत्य उसे पकड़े नहीं रह सके |
भगवान नारायणने विशाल कच्छपका रूप धारण किया | वे उस पर्वतको अपनी पीठपर उठाये
रहे | साथ ही वे अपने चतुर्भुजरूपसे अकेले ही वासुकिनागका मुख एवं पूँछ पकड़कर उसे
मन्दराचलमें लपेटे समुद्र-मन्थन भी करते रहे; क्योंकि देवता और दैत्य समुद्र मथते-
मथते थक चुके थे | उन लोगोंके किये कुछ हुआ नहीं | उनके थक जानेपर श्रीहरिने
प्रारम्भ किया | तभी समुद्रसे चौदहों रत्न एवं अमृत निकला |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217