परिशिष्ट (क) रामचरित
कहि धौं सखी बटाऊ को हैं ?
अद्भुत बधू लिये संग डोलत, देखत त्रिभुवन मोहैं |
परम सुसील सुलच्छन जोरी, विधि की रची न होइ |
काकी तिनकौं उपमा दीजै, देह धरै धौं कोइ |
इनमैं को पति आहिं तिहारे, पुरजनि पूछैं धाइ |
राजिवनैन मैन की मूरति, सैननि दियौ बताइ |
गईं सकल मिलि संग दूरि लौं, मन न फिरत पुर-बास |
सूरदास स्वामी के बिछुरत, भरि भरि लेति उसास ||5||
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217