परिशिष्ट (क) रामचरित
बिनती किहिं बिधि प्रभुहिं सुनाऊँ ?
महाराज रघुवीर धीर कौं, समय न कबहूँ पाऊँ |
जाम रहत जामिनि के बीतैं, तिहिं अवसर उठि धाऊँ |
सकुच होत सुकुमार नींद मैं, कैसें प्रभुहि जगाऊँ |
दिनकर-किरिन-उदित, ब्रह्मादिक-रुद्रादिक इक ठाऊँ |
अगनित भीर अमर-मुनि गन की, तिहिं तैं ठौर न पाऊँ |
उठत सभा दिन मधि, सैनापति भीर देखि, फिरि आऊँ |
न्हात-खात सुख करत साहिबी, कैसैं करि अनखाँऊँ |
रजनी-मुख आवत गुन-गावत, नारद तुंबुर नाऊँ |
तुमहीं कहौ कृपानिधि रघुपति, किहि गिनती मैं आऊँ ?
एक उपाय करौ कमलापति, कहौ तौ कहि समुझाऊँ |
पतित-उधारन नाम सूर प्रभु, यह रुक्का पहुँचाऊँ ||18||
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217