अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 73
अगम सबहि बरनत बरबरनी। जिमि जलहीन मीन गमु धरनी।।
भरत अमित महिमा सुनु रानी। जानहिं रामु न सकहिं बखानी।।
बरनि सप्रेम भरत अनुभाऊ। तिय जिय की रुचि लखि कह राऊ।।
बहुरहिं लखनु भरतु बन जाहीं। सब कर भल सब के मन माहीं।।
देबि परंतु भरत रघुबर की। प्रीति प्रतीति जाइ नहिं तरकी।।
भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की।।
परमारथ स्वारथ सुख सारे। भरत न सपनेहुँ मनहुँ निहारे।।
साधन सिद्ध राम पग नेहू।।मोहि लखि परत भरत मत एहू।।
दो0-भोरेहुँ भरत न पेलिहहिं मनसहुँ राम रजाइ।
करिअ न सोचु सनेह बस कहेउ भूप बिलखाइ।।289।।
राम भरत गुन गनत सप्रीती। निसि दंपतिहि पलक सम बीती।।
राज समाज प्रात जुग जागे। न्हाइ न्हाइ सुर पूजन लागे।।
गे नहाइ गुर पहीं रघुराई। बंदि चरन बोले रुख पाई।।
नाथ भरतु पुरजन महतारी। सोक बिकल बनबास दुखारी।।
सहित समाज राउ मिथिलेसू। बहुत दिवस भए सहत कलेसू।।
उचित होइ सोइ कीजिअ नाथा। हित सबही कर रौरें हाथा।।
अस कहि अति सकुचे रघुराऊ। मुनि पुलके लखि सीलु सुभाऊ।।
तुम्ह बिनु राम सकल सुख साजा। नरक सरिस दुहु राज समाजा।।
दो0-प्रान प्रान के जीव के जिव सुख के सुख राम।
तुम्ह तजि तात सोहात गृह जिन्हहि तिन्हहिं बिधि बाम।।290।।
सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ।।
जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू। जहँ नहिं राम पेम परधानू।।
तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं। तुम्ह जानहु जिय जो जेहि केहीं।।
राउर आयसु सिर सबही कें। बिदित कृपालहि गति सब नीकें।।
आपु आश्रमहि धारिअ पाऊ। भयउ सनेह सिथिल मुनिराऊ।।
करि प्रनाम तब रामु सिधाए। रिषि धरि धीर जनक पहिं आए।।
राम बचन गुरु नृपहि सुनाए। सील सनेह सुभायँ सुहाए।।
महाराज अब कीजिअ सोई। सब कर धरम सहित हित होई।
दो0-ग्यान निधान सुजान सुचि धरम धीर नरपाल।
तुम्ह बिनु असमंजस समन को समरथ एहि काल।।291।।
सुनि मुनि बचन जनक अनुरागे। लखि गति ग्यानु बिरागु बिरागे।।
सिथिल सनेहँ गुनत मन माहीं। आए इहाँ कीन्ह भल नाही।।
रामहि रायँ कहेउ बन जाना। कीन्ह आपु प्रिय प्रेम प्रवाना।।
हम अब बन तें बनहि पठाई। प्रमुदित फिरब बिबेक बड़ाई।।
तापस मुनि महिसुर सुनि देखी। भए प्रेम बस बिकल बिसेषी।।
समउ समुझि धरि धीरजु राजा। चले भरत पहिं सहित समाजा।।
भरत आइ आगें भइ लीन्हे। अवसर सरिस सुआसन दीन्हे।।
तात भरत कह तेरहुति राऊ। तुम्हहि बिदित रघुबीर सुभाऊ।।
दो0-राम सत्यब्रत धरम रत सब कर सीलु सनेहु।।
संकट सहत सकोच बस कहिअ जो आयसु देहु।।292।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217