अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 79
भोर न्हाइ सबु जुरा समाजू। भरत भूमिसुर तेरहुति राजू।।
भल दिन आजु जानि मन माहीं। रामु कृपाल कहत सकुचाहीं।।
गुर नृप भरत सभा अवलोकी। सकुचि राम फिरि अवनि बिलोकी।।
सील सराहि सभा सब सोची। कहुँ न राम सम स्वामि सँकोची।।
भरत सुजान राम रुख देखी। उठि सप्रेम धरि धीर बिसेषी।।
करि दंडवत कहत कर जोरी। राखीं नाथ सकल रुचि मोरी।।
मोहि लगि सहेउ सबहिं संतापू। बहुत भाँति दुखु पावा आपू।।
अब गोसाइँ मोहि देउ रजाई। सेवौं अवध अवधि भरि जाई।।
दो0-जेहिं उपाय पुनि पाय जनु देखै दीनदयाल।
सो सिख देइअ अवधि लगि कोसलपाल कृपाल।।313।।
पुरजन परिजन प्रजा गोसाई। सब सुचि सरस सनेहँ सगाई।।
राउर बदि भल भव दुख दाहू। प्रभु बिनु बादि परम पद लाहू।।
स्वामि सुजानु जानि सब ही की। रुचि लालसा रहनि जन जी की।।
प्रनतपालु पालिहि सब काहू। देउ दुहू दिसि ओर निबाहू।।
अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो। किएँ बिचारु न सोचु खरो सो।।
आरति मोर नाथ कर छोहू। दुहुँ मिलि कीन्ह ढीठु हठि मोहू।।
यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी। तजि सकोच सिखइअ अनुगामी।।
भरत बिनय सुनि सबहिं प्रसंसी। खीर नीर बिबरन गति हंसी।।
दो0-दीनबंधु सुनि बंधु के बचन दीन छलहीन।
देस काल अवसर सरिस बोले रामु प्रबीन।।314।।
तात तुम्हारि मोरि परिजन की। चिंता गुरहि नृपहि घर बन की।।
माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू। हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू।।
मोर तुम्हार परम पुरुषारथु। स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु।।
पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई। लोक बेद भल भूप भलाई।।
गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें। चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें।।
अस बिचारि सब सोच बिहाई। पालहु अवध अवधि भरि जाई।।
देसु कोसु परिजन परिवारू। गुर पद रजहिं लाग छरुभारू।।
तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी। पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी।।
दो0-मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक।।315।।
राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई।।
बंधु प्रबोधु कीन्ह बहु भाँती। बिनु अधार मन तोषु न साँती।।
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू।।
प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं।।
चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के।।
संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जुन जीव जतन के।।
कुल कपाट कर कुसल करम के। बिमल नयन सेवा सुधरम के।।
भरत मुदित अवलंब लहे तें। अस सुख जस सिय रामु रहे तें।।
दो0-मागेउ बिदा प्रनामु करि राम लिए उर लाइ।
लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसरु पाइ।।316।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217