लंकाकाण्ड
लंकाकाण्ड पेज 18
महिष खाइ करि मदिरा पाना। गर्जा बज्राघात समाना।।
कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा।।
देखि बिभीषनु आगें आयउ। परेउ चरन निज नाम सुनायउ।।
अनुज उठाइ हृदयँ तेहि लायो। रघुपति भक्त जानि मन भायो।।
तात लात रावन मोहि मारा। कहत परम हित मंत्र बिचारा।।
तेहिं गलानि रघुपति पहिं आयउँ। देखि दीन प्रभु के मन भायउँ।।
सुनु सुत भयउ कालबस रावन। सो कि मान अब परम सिखावन।।
धन्य धन्य तैं धन्य बिभीषन। भयहु तात निसिचर कुल भूषन।।
बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर। भजेहु राम सोभा सुख सागर।।
दो0-बचन कर्म मन कपट तजि भजेहु राम रनधीर।
जाहु न निज पर सूझ मोहि भयउँ कालबस बीर। 64।।
बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्रैलोक बिभूषन।।
नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा।।
एतना कपिन्ह सुना जब काना। किलकिलाइ धाए बलवाना।।
लिए उठाइ बिटप अरु भूधर। कटकटाइ डारहिं ता ऊपर।।
कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा।।
मुर् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो।।
तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। पर् यो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो।।
पुनि उठि तेहिं मारेउ हनुमंता। घुर्मित भूतल परेउ तुरंता।।
पुनि नल नीलहि अवनि पछारेसि। जहँ तहँ पटकि पटकि भट डारेसि।।
चली बलीमुख सेन पराई। अति भय त्रसित न कोउ समुहाई।।
दो0-अंगदादि कपि मुरुछित करि समेत सुग्रीव।
काँख दाबि कपिराज कहुँ चला अमित बल सींव।।65।।
उमा करत रघुपति नरलीला। खेलत गरुड़ जिमि अहिगन मीला।।
भृकुटि भंग जो कालहि खाई। ताहि कि सोहइ ऐसि लराई।।
जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं। गाइ गाइ भवनिधि नर तरिहहिं।।
मुरुछा गइ मारुतसुत जागा। सुग्रीवहि तब खोजन लागा।।
सुग्रीवहु कै मुरुछा बीती। निबुक गयउ तेहि मृतक प्रतीती।।
काटेसि दसन नासिका काना। गरजि अकास चलउ तेहिं जाना।।
गहेउ चरन गहि भूमि पछारा। अति लाघवँ उठि पुनि तेहि मारा।।
पुनि आयसु प्रभु पहिं बलवाना। जयति जयति जय कृपानिधाना।।
नाक कान काटे जियँ जानी। फिरा क्रोध करि भइ मन ग्लानी।।
सहज भीम पुनि बिनु श्रुति नासा। देखत कपि दल उपजी त्रासा।।
दो0-जय जय जय रघुबंस मनि धाए कपि दै हूह।
एकहि बार तासु पर छाड़ेन्हि गिरि तरु जूह।।66।।
कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा। सन्मुख चला काल जनु क्रुद्धा।।
कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। जनु टीड़ी गिरि गुहाँ समाई।।
कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा। कोटिन्ह मीजि मिलव महि गर्दा।।
मुख नासा श्रवनन्हि कीं बाटा। निसरि पराहिं भालु कपि ठाटा।।
रन मद मत्त निसाचर दर्पा। बिस्व ग्रसिहि जनु एहि बिधि अर्पा।।
मुरे सुभट सब फिरहिं न फेरे। सूझ न नयन सुनहिं नहिं टेरे।।
कुंभकरन कपि फौज बिडारी। सुनि धाई रजनीचर धारी।।
देखि राम बिकल कटकाई। रिपु अनीक नाना बिधि आई।।
दो0-सुनु सुग्रीव बिभीषन अनुज सँभारेहु सैन।
मैं देखउँ खल बल दलहि बोले राजिवनैन।।67।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217