लंकाकाण्ड
लंकाकाण्ड पेज 21
मेघनाद के मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी।।
तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा।।
इहाँ बिभीषन मंत्र बिचारा। सुनहु नाथ बल अतुल उदारा।।
मेघनाद मख करइ अपावन। खल मायावी देव सतावन।।
जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि। नाथ बेगि पुनि जीति न जाइहि।।
सुनि रघुपति अतिसय सुख माना। बोले अंगदादि कपि नाना।।
लछिमन संग जाहु सब भाई। करहु बिधंस जग्य कर जाई।।
तुम्ह लछिमन मारेहु रन ओही। देखि सभय सुर दुख अति मोही।।
मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई। जेहिं छीजै निसिचर सुनु भाई।।
जामवंत सुग्रीव बिभीषन। सेन समेत रहेहु तीनिउ जन।।
जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन। कटि निषंग कसि साजि सरासन।।
प्रभु प्रताप उर धरि रनधीरा। बोले घन इव गिरा गँभीरा।।
जौं तेहि आजु बधें बिनु आवौं। तौ रघुपति सेवक न कहावौं।।
जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर दोहाई।।
दो0-रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत।।75।।
जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा। आहुति देत रुधिर अरु भैंसा।।
कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा। जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा।।
तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई। लातन्हि हति हति चले पराई।।
लै त्रिसुल धावा कपि भागे। आए जहँ रामानुज आगे।।
आवा परम क्रोध कर मारा। गर्ज घोर रव बारहिं बारा।।
कोपि मरुतसुत अंगद धाए। हति त्रिसूल उर धरनि गिराए।।
प्रभु कहँ छाँड़ेसि सूल प्रचंडा। सर हति कृत अनंत जुग खंडा।।
उठि बहोरि मारुति जुबराजा। हतहिं कोपि तेहि घाउ न बाजा।।
फिरे बीर रिपु मरइ न मारा। तब धावा करि घोर चिकारा।।
आवत देखि क्रुद्ध जनु काला। लछिमन छाड़े बिसिख कराला।।
देखेसि आवत पबि सम बाना। तुरत भयउ खल अंतरधाना।।
बिबिध बेष धरि करइ लराई। कबहुँक प्रगट कबहुँ दुरि जाई।।
देखि अजय रिपु डरपे कीसा। परम क्रुद्ध तब भयउ अहीसा।।
लछिमन मन अस मंत्र दृढ़ावा। एहि पापिहि मैं बहुत खेलावा।।
सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा। सर संधान कीन्ह करि दापा।।
छाड़ा बान माझ उर लागा। मरती बार कपटु सब त्यागा।।
दो0-रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँड़ेसि प्रान।
धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान।।76।।
बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो।।
तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा। चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा।।
बरषि सुमन दुंदुभीं बजावहिं। श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं।।
जय अनंत जय जगदाधारा। तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा।।
अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए। लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए।।
सुत बध सुना दसानन जबहीं। मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं।।
मंदोदरी रुदन कर भारी। उर ताड़न बहु भाँति पुकारी।।
नगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकंधर पोचा।।
दो0-तब दसकंठ बिबिध बिधि समुझाईं सब नारि।
नस्वर रूप जगत सब देखहु हृदयँ बिचारि।।77।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217