लंकाकाण्ड
लंकाकाण्ड पेज 22
तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन। आपुन मंद कथा सुभ पावन।।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।
निसा सिरानि भयउ भिनुसारा। लगे भालु कपि चारिहुँ द्वारा।।
सुभट बोलाइ दसानन बोला। रन सन्मुख जा कर मन डोला।।
सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई।।
निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा।।
अस कहि मरुत बेग रथ साजा। बाजे सकल जुझाऊ बाजा।।
चले बीर सब अतुलित बली। जनु कज्जल कै आँधी चली।।
असगुन अमित होहिं तेहि काला। गनइ न भुजबल गर्ब बिसाला।।
छं0-अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्त्रवहिं आयुध हाथ ते।
भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते।।
गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने।
जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने।।
दो0-ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम।
भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम।।78।।
चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा।।
बिबिध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना।।
चले मत्त गज जूथ घनेरे। प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे।।
बरन बरद बिरदैत निकाया। समर सूर जानहिं बहु माया।।
अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी।।
चलत कटक दिगसिधुंर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं।।
उठी रेनु रबि गयउ छपाई। मरुत थकित बसुधा अकुलाई।।
पनव निसान घोर रव बाजहिं। प्रलय समय के घन जनु गाजहिं।।
भेरि नफीरि बाज सहनाई। मारू राग सुभट सुखदाई।।
केहरि नाद बीर सब करहीं। निज निज बल पौरुष उच्चरहीं।।
कहइ दसानन सुनहु सुभट्टा। मर्दहु भालु कपिन्ह के ठट्टा।।
हौं मारिहउँ भूप द्वौ भाई। अस कहि सन्मुख फौज रेंगाई।।
यह सुधि सकल कपिन्ह जब पाई। धाए करि रघुबीर दोहाई।।
छं0-धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते।
मानहुँ सपच्छ उड़ाहिं भूधर बृंद नाना बान ते।।
नख दसन सैल महाद्रुमायुध सबल संक न मानहीं।
जय राम रावन मत्त गज मृगराज सुजसु बखानहीं।।
दो0-दुहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरी जानि।
भिरे बीर इत रामहि उत रावनहि बखानि।।79।।
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।
दो0-महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।80(क)।।
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।
एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज।।80(ख)।।
उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान।
लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन।।80(ग)।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217