लंकाकाण्ड
लंकाकाण्ड पेज 29
तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।।
सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी।।
मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता।।
होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता।।
रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई। बिधि बिपरीत चरित सब करई।।
मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही।।
जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा। अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा।।
जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए। लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए।।
रघुपति बिरह सबिष सर भारी। तकि तकि मार बार बहु मारी।।
ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना। सोइ बिधि ताहि जिआव न आना।।
बहु बिधि कर बिलाप जानकी। करि करि सुरति कृपानिधान की।।
कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी।।
प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही।।
छं0-एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है।
मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है।।
सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा।
अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा।।
दो0-काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान।
तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान।।99।।
अस कहि बहुत भाँति समुझाई। पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई।।
राम सुभाउ सुमिरि बैदेही। उपजी बिरह बिथा अति तेही।।
निसिहि ससिहि निंदति बहु भाँती। जुग सम भई सिराति न राती।।
करति बिलाप मनहिं मन भारी। राम बिरहँ जानकी दुखारी।।
जब अति भयउ बिरह उर दाहू। फरकेउ बाम नयन अरु बाहू।।
सगुन बिचारि धरी मन धीरा। अब मिलिहहिं कृपाल रघुबीरा।।
इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा। निज सारथि सन खीझन लागा।।
सठ रनभूमि छड़ाइसि मोही। धिग धिग अधम मंदमति तोही।।
तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा। भौरु भएँ रथ चढ़ि पुनि धावा।।
सुनि आगवनु दसानन केरा। कपि दल खरभर भयउ घनेरा।।
जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी। धाए कटकटाइ भट भारी।।
छं0-धाए जो मर्कट बिकट भालु कराल कर भूधर धरा।
अति कोप करहिं प्रहार मारत भजि चले रजनीचरा।।
बिचलाइ दल बलवंत कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो।
चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि बिदारि तनु ब्याकुल कियो।।
दो0-देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार।
अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार।।100।।
छं0-जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड।।
बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच।।1।।
जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ मनुज कपाल।।
करि सद्य सोनित पान। नाचहिं करहिं बहु गान।।2।।
धरु मारु बोलहिं घोर। रहि पूरि धुनि चहुँ ओर।।
मुख बाइ धावहिं खान। तब लगे कीस परान।।3।।
जहँ जाहिं मर्कट भागि। तहँ बरत देखहिं आगि।।
भए बिकल बानर भालु। पुनि लाग बरषै बालु।।4।।
जहँ तहँ थकित करि कीस। गर्जेउ बहुरि दससीस।।
लछिमन कपीस समेत। भए सकल बीर अचेत।।5।।
हा राम हा रघुनाथ। कहि सुभट मीजहिं हाथ।।
एहि बिधि सकल बल तोरि। तेहिं कीन्ह कपट बहोरि।।6।।
प्रगटेसि बिपुल हनुमान। धाए गहे पाषान।।
तिन्ह रामु घेरे जाइ। चहुँ दिसि बरूथ बनाइ।।7।।
मारहु धरहु जनि जाइ। कटकटहिं पूँछ उठाइ।।
दहँ दिसि लँगूर बिराज। तेहिं मध्य कोसलराज।।8।।
छं0-तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही।
जनु इंद्रधनुष अनेक की बर बारि तुंग तमालही।।
प्रभु देखि हरष बिषाद उर सुर बदत जय जय जय करी।
रघुबीर एकहि तीर कोपि निमेष महुँ माया हरी।।1।।
माया बिगत कपि भालु हरषे बिटप गिरि गहि सब फिरे।
सर निकर छाड़े राम रावन बाहु सिर पुनि महि गिरे।।
श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।
सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं।।2।।
दो0-ताके गुन गन कछु कहे जड़मति तुलसीदास।
जिमि निज बल अनुरूप ते माछी उड़इ अकास।।101(क)।।
काटे सिर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस।
प्रभु क्रीड़त सुर सिद्ध मुनि ब्याकुल देखि कलेस।।101(ख)।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217