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इसी प्रकार भटकता हुआ वह गिरहकटों के गिरोह के हाथ लगा और तब उसकी शिक्षा प्रारंभ हुई। जैसे लोग कुत्ते को दो पैरों से बैठना, गर्दन ऊँची कर खडा होना, मुँह पर पंजे रखकर सलाम करना आदि करतब सिखाते हैं उसी तरह वे सब उसे तंबाकू के धुएँ और दुर्गंध माँस से भरे औरफटे चीथडे, टूटे बर्तन और मैले शरीर से बसे हुए कमरे में बंद कर कुछ विशेष संकेतों और हँसने रोने के अभिनय में पारंगत बनाने लगे।
कुत्ते के पिल्ले के समान ही वह घुटनों के बल खडा रहता और हँसने रोने की विविध मुद्राओं का अभ्यास करता। हँसी का ाोत इस प्रकार सूख चुका था कि अभिनय में भी वह बार-बार भूल करता और मार खाता। पर क्रंदन उसके भीतर इतना अधिक उमडा था कि जरा मुँह के बनाते ही दोनों ऑंखों से दो गोल-गोल बूँदें नाक के दोनों ओर निकल आतीं और पतली समानांतर रेखा बनातीं और मुँह के दोनों सिरों को छूती हुई ठुड्डी के नीचे तक चली जातीं। इसे अपनी दुर्लभ शिक्षा का फल समझ कर रोओं से काले उदरपर पीला सा रंग बाँधने वाला उसका शिक्षक प्रसन्नता से उठकर उसे लात जमा कर पुरस्कार देता।
वह दल बर्मी, चीनी, स्यामी आदि का सम्मिश्रण था। इसी से 'चोरों की बारात में अपनी-अपनी होशियारी के सिध्दांत का पालनबडी सतर्कता से हुआ करता। जो उस पर कृपा रखते थे उनके विरोधियों का स्नेहपात्र होकर पिटना भी उसका परम कर्तव्य हो जाता था। किसी की कोई वस्तु खोते ही उस पर संदेह की ऐसी दृष्टि आरंभ होती थी कि बिना चुराए ही वह चोर के समान काँपने लगता और तब उस 'चोर के घर छिछोर की जो मरम्मत होती कि उसका स्मरण करके चीनी की ऑंखें आज भी व्यथा और अपमान से भक-भक जलने लगतीं थीं। सबके खाने के पात्र से बचा उच्छिष्ट एक तामचीनी के टेढे बर्तन में सिगार से जगह-जगह जले हुए कागज से ढक कर रख दिया जाता था जिसे वह हरी ऑंखों वाली बिल्ली के साथ रखता था। बहुत रात गए तक उसके नरक के साथी एक-एक कर आते रहते और अंगीठी के पास सिकुड कर लेटे हुए बालक को ठुकराते हुए निकल जाते। उनके पैरों की आहट को पढने का उसे अच्छा अभ्यास हो चला था। जो हल्के पैरों को जल्दी-जल्दी रखता आता है उसे बहुत कुछ मिल गया है। जो शिथिल पैरों को घसीटता हुआ लौटता यह खाली हाथ है। जो दीवार को टटोलता हुआ लडखडाते पैरों से बढता वह शराबमें सब खोकर बेसुध आया है। जो देहली से ठोकर खाकर धम-धम पैर रखता हुआ घुसता है उसने किसी से झगडा मोल लिया है आदि का ज्ञान उसे अनजाने में ही प्राा हो गया था।
यदि दीक्षांत संस्कार के उपरांत विद्या के उपयोग का श्रीगणेश होते ही उसकी भेंट पिता के परिचित एक चीनी व्यापारी से नहीं हो जाती तो इस साधना से प्राा विद्वत्ता का अंत क्या होता यह बताना कठिन है। पर संयोग ने उसके जीवन की दिशा को इस प्रकार बदल दिया कि वह कपडे की दुकान पर व्यापारी की विद्या सीखने लगा। प्रशंसा का पुल बाँधते-बाँधते वर्षों पुराना कपडा सबसे पहले उठा लाना, जग से इस तरह नापना कि जो रत्ती बराबर भी आगे न बढे, चाहे अंगुल भर पीछे रह जाए। रुपए से लेकर पाई तक को खूब देखभाल कर लेना और लौटाते समय पुराने, खोटे पैसे विशेष रूप से खनखा-खनका कर दे डालना आदि का ज्ञान कम रहस्यमयी नहीं था। पर मालिक के साथ भोजन मिलने के कारण बिल्ली के उच्छिष्ट सहभोज की आवश्यकता नहीं रही और दुकान में सोने की व्यवस्था होने से अंगीठीके पास ठोकरों से पुरस्कृत होने की विशेषता जाती रही।
चीनी छोटी अवस्था में ही समझ गया था कि धन संचय से संबंध रखने वाली सभी विद्याए एक सी हैं, पर मनुष्य किसी का प्रयोग प्रतिष्ठापूर्वक कर सकता है और किसी का छिपा कर। कुछ अधिक समझदार होने पर उसने अपनी अभागी बहन को ढूँढने का बहुत प्रयत्न किया पर उसका पता न पा सका। ऐसी बालिकाओं का जीवन खतरे से खाली नहीं रहता। कभी वे मूल्य देकर खरीदी जाती हैं और कभी बिना मूल्य के गायब कर दी जाती हैं। कभी वे निराश होकर आत्महत्या कर लेती हैं और कभी शराबी ही नशे में उन्हें जीवन से मुक्त करा देते हैं। उस रहस्य की सूत्रधारिणी विमाता भी संभवत: पुनर्विवाह कर किसी और को सुखी बनाने के लिए कहीं दूर चली गई थी। इस प्रकार उस दिशा में खोज का मार्ग ही बंद हो गया। इसी बीचमें मालिक के काम से रंगून आया फिर दो वर्ष कोलकाता में रहा और अन्य साथियों के साथ उसे इस ओर आने का आदेश मिला।
यहाँ शहर में एक चीनी जूते वाले के घर ठहरा है और सवेरे आठ से बारह और दो से छ बजे तक फेरी लगाकर कपडे बेचता रहता है। चीनी की दो इच्छाएँ हैं, ईमानदार बनने की और बहन को ढूँढ लेने की- जिनमें से एक की पूर्ति तो स्वयं उसी के हाथ में है और दूसरी के लिए वह प्रतिदिन भगवान बुध्द से प्रार्थना करता है। बीच-बीच में वह महीनों के लिए बाहर चला जाता था, पर लौटते ही 'सिस्तर का वास्ते ई लाता है। कहता हुआ कुछ लेकर उपस्थित हो जता। इस प्रकार देखते-देखते मैं इतनी अभ्यस्त हो चुकी थी कि जब वह एक दिन वह 'सिस्तर के वास्ते कह कर और शब्दों की खोज करने लगा तब मैं उसकीकठिनाई न समझकर हँस पडी। धीरे-धीरे पता चला- बुलावा आया है, वह लडने के लिए चाइना जाएगा। इतनी जल्दी कपडे कहाँ बेचे और न बेचने पर मालिक को हानि पहुँचा कर बेइमान कैसे बने? यदि मैं आवश्यक रूपया देकर सब कपडे ले लूँ, तो वह मालिक का हिसाबचुका कर तुरंत देश की ओर चल दे।
किसी दिन पिता का पता पूछे जाने पर वह हकलाया था- आज भी संकोच से हकला रहा था। मैंने सोचने का अवकाश पाने के लिए प्रश्न किया- 'तुम्हारे तो कोई है ही नहीं, फिर बुलावा किसने भेजा? चीनी की ऑंखें विस्मय से भर कर पूरी खुल गईं- 'हम कब बोला हमारा चाइना नहीं है? हम कब ऐसा बोला सिस्तर? मुझे स्वयं अपने प्रश्न पर लज्जा आई, उसका इतना बडा चीन रहते वह अकेले कैसे होगा!
मेरे पास रुपया रहना ही कठिन है, अधिक रुपए का चर्चा ही क्यों! पर कुछ अपने पास खोज ढूँढ कर और कुछ दूसरों से उधार लेकर मैंने चीनी के जाने का प्रबंध किया। मुझे अंतिम अभिवादन कर जब वह चंचल पैरों से जाने लगा, तब मैंने पुकार कर कहा- यह गज तो लेते जाओ! चीनी सहज स्मित के साथ घूमकर 'सिस्तर के वास्ते ही कह सका। शेष शब्द उसके हकलाने में खो गए। आज कई वर्ष हो चुके हैं- चीनी को फिर देखने की संभावना नहीं। उसकी बहन से मेरा कोई परिचय नहीं, पर न जाने क्यों वे दोनों भाई-बहन मेरे स्मृतिपट से हटते ही नहीं।
चीनी की गठरी में से कई थान मैं अपने ग्रामीण बालकों के कुर्ते बना-बना कर खर्च कर चुकी ँ। परंतु अब भी थान मेरी अलमारी में रखे हैं और लोहे की गज दीवार के कोने में खडा है। एक बार जब इन थानों को देखकर एक खादी भक्त बहन ने आक्षेप किया था- 'जो लोग बाहर विशुध्द खद्दरधारी होते हैं वे भी विदेशी रेशम के थान खरीद कर रखते हैं, इसी से तो देश की उन्नति नहीं होती- तब मैं बडे कष्ट से हँसी रोक सकी।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217