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मलबे का मालिक मोहन राकेश

मलबे का मालिक मोहन राकेश

 

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ऊपर खिड़कियों में चेमेगोइयां तेज हो गयीं कि अब दोनों आमने-सामने आ गए हैं, तो बात जरूर खुलेगी फ़िर हो सकता है, दोनों में गाली-गलौज भी हो अब रक्खा गनी को कुछ नहीं कह सकता, अब वो दिन नहीं रहे बड़ा मलबे का मालिक बनता था! असल में मलबा न इसका है, न गनी का। मलबा तो सरकार की मिल्कियत है क़िसी को गाय का खूँटा नहीं लगाने देता। मनोरी भी डरपोक है। उसने गनी को बताया क्यों नहीं कि रक्खे ने ही चिराग और उसके बीवी-बच्चों को मारा है? रक्खा आदमी नहीं है, सांड़ है। दिन भर सांड़ की तरह गली में घूमता है। ग़नी बेचारा कितना दुबला हो गया है। दाढ़ी के सारे बाल सफेद हो गये है!

गनी ने कुएं की सिल पर बैठकर कहा-- देख, रक्खे पहलवान, क्या से क्या रह गया है? भरा-पूरा घर छोड़कर गया था और आज यहां मिट्टी देखने आया हूँ। बसे हुए घर की यही निशानी रह गयी है। तू सच पूछे, रक्खे, तो मेरा यह मिट्टी भी छोड़कर जाने को जी नहीं करता।

और उसकी आंखें छलछला आई।

पहलवान ने फैली हुई टांगें समेट लीं और अंगोछा कुएं की मुंडेर से से उठाकर कंघे पर डाल लिया। लच्छे ने चिलम उसकी तरफ बढ़ा दी और वह कश खींचने लगा।

-- तू बता, रक्खे, यह सब हुआ किस तरह?

गनी आंसू रोकता हुआ आग्रह के साथ बोला-- तुम लोग उसके पास थे, सबमें भाई-भाई की-सी मुहब्बत थी, अगर वह चाहता तो वह तुममें से किसी के घर में नहीं छिप सकता था? उसे इतनी भी समझ नहीं आई!

-- ऐसा ही है ।

रक्खें को स्वयं लगा कि उसकी आवाज में कुछ अस्वाभाविक-सी गूँज है। उसके होंठ गाढ़े लार से चिपक-से गये थे। उसकी मूँछों के नीचे से पसीना उसके होंठों पर आ रहा था। उसके माथे पर किसी चीज का दबाव पड़ रहा था और उसकी रीढ़ की हड्डी सहारा चाह रही थी।

-- पाकिस्तान का क्या हाल हैं?

उसने वैसे ही स्वर में पूछा। उसके गले की नसों में तनाव आ गया था। उसने अंगोछे से बगलों का पसीना पोंछा और गले का झाग मुँह में खींच कर गली में थूक दिया।

-- मैं क्या हाल बताऊँ, रक्खे!

गनी दोनों हाथों से छड़ी पर जोर देकर झुकता हुआ बोला-- मेरा हाल पूछो, तो वह खुदा ही जानता है। मेरा चिराग साथ होता तो और बात थी। रक्खे! मैंने उसे समझाया था कि मरे साथ चला चल। मगर वह अड़ा रहा कि नया मकान छोड़कर कैसे जाऊँ । यहाँ अपनी गली है, कोई ख़तरा नहीं है। भोले कबूतर ने यह नहीं सोचा कि गली में ख़तरा न सही, बाहर से तो ख़तरा आ सकता है। मकान की रखवाली के लिए चारों जनों ने जान दे दी। रक्खे! उसे तेरा बहुत भरोसा था। कहता था कि रक्खे के रहते कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मगर जब आनी आई, तो रक्खे के रोके न रूक सकी।

रक्खे ने सीधा होने की चेष्टा की, क्योंकि उसकी रीढ़ की हड्डी दर्द कर रही थी। उसे अपनी कमर और जांघों के जोड़ पर सख्त दबाव महसूस हो रहा था। पेट की अंतड़ियों के पास जैसे कोई चीज़ उसकी साँस को जकड़ रही थी। उसका सारा जिस्म पसीने से भीग गया था ओर उसके पैरों के तलुवों में चुनचुनाहट हो रही थी। बीच-बीच में फलझड़ियाँ-सी ऊपर से उतरतीं और उसकी आँखों के सामने से तैरती हुई निकल जातीं। उसे अपनी जबान और होंठों के बीच का अन्तर कुछ ज्यादा महसूस हो रहा था। उसने अंगोछे से होंठों के कोनों को साफ किया और उसके मुँह से निकला-

--हे प्रभु! सच्चिआ, तू ही है, तू ही है, तू ही है!

गनी ने लक्षित किया कि पहलवान के होंठ सूख रहे हैं ओर उसकी आंखों के इर्द-गिर्द दायरे गहरे हो आये हैं, तो वह उसके कंघे पर हाथ रखकर बोला-- जी हल्कान न कर, रक्खिया। जो होनी थी, सो हो गयी। उसे कोई लौटा थोड़े ही सकता है। खुदा नेक की नेकी रखे और बद की बदी माफ करें। मेरे लिए चिराग नहीं, तो तुम लोग तो हो। मुझे आकर इतनी ही तसल्ली हुई कि उस ज़माने की कोई तो यादगार है। मैंने तुमको देख लिया, तो चिराग को देख लिया। अल्लाह तुम लोगों को सेहतमंद रखे। जीते रहो और खुशियां देखो!

और गनी छड़ी पर दबाव देकर उठ खड़ा हुआ। चलते हुए उसने फिर कहा-- अच्छा रक्खे पहलवान, याद रखना!

रक्खे के गले से स्वीकृति की मद्धम-सी आवाज निकली। अंगोछा बीच में लिये हुए उसके दोनों हाथ जुड़ गये। गनी गली के वातावरण को हसरत भरी नजर से देखता हुआ धीरे-धीरे गली से बाहर चला गया।

ऊपर खिड़कियों में थोड़ी देर चेमेगोइयां चलती रहीं कि मनोरी ने गली से बाहर निकलकर जरूर गनी को सब कुछ बता दिया होगा। ग़नी के सामने रक्खे का तालू किस तरह खुश्क हो गया था! रक्खा अब किस मुँह से लोगों को मलबे पर गाय बांधने से रोकेगा? बेचारी जुबैदा! बेचारी कितनी अच्छी थी! कभी किसी से मंदा बोल नहीं बोली। रक्खे मरदूद का घर, न घाट । इसे किस माँ-बहन का लिहाज था?

और थोड़ी ही देर में स्त्रियां घरों से गली में उतर आयीं, बच्चे गली में गुल्ली-उण्डा खेलने लगे और दो बारह-तेरह बरस की लड़कियां किसी बात पर एक-दूसरी से गुत्थमगुत्था हो गयीं।

रक्खा गहरी शाम तक कुएं पर बैठा खंखरता और चिलम फूँकता रहा। कई लोगों ने वहाँ से गुजरते हुए उससे पूछा-

-- रक्खे शाह, सुना है आज गनी पाकिस्तान से आया था?

-- आया था । रक्खे ने हर बार एक ही उत्तर दिया।

-- फिर?

-- फिर कुछ नहीं, चला गया।

रात होने पर पहलवान रोज़ की तरह गली के बाहर बाईं ओर की दुकान के तख्ते पर आ बैठा। रोज़ अक्सर वह रास्ते से गुजरने वाले परिचित लोगों को आवाज़ दे-देकर बुला लेता था और उन्हें सट्टे के गुर और सेहत के नुस्खे बताया करता था। मगर उस दिन वह लच्छे को अपनी वैष्नों देवी की यात्रा का विवरण सुनाता रहा, जो उसने पन्द्रह साल पहले की थी। लच्छे को विदा करके वह गली में आया, तो मलबे के पास लोकू पंडित की भैंस को खड़ी देखकर वह रोज़ की आदत के मुताबित उसे धक्के दे-दे कर हटाने लगा-- तत्-तत्...तत्- तत्...

और भैंस को हटाकर वह सुस्ताने के लिए मलबे के चौखट पर बैठ गया। गली उस समय बिकुल सुनसान थी। कमेटी की कोई बत्ती न होने से वहाँ शाम से ही अंधेरा हो जाता था। मलबे के नीचे नाली का पानी हल्की आवाज़ करता हुआ बह रहा था। रात की ख़ामोशी के साथ मिली हुई कई तरह की हल्की-हल्की आवाज़ें मलबे की मिट्टी में से निकल रहीं थीं ऋ ऋ च्यु च्यु च्यु चिक्-चिक्-चिक् चिर्र्र्र्र्र्र् इर्र्र्र्र् -रीरीरीरी- चिर्र्र्र् एक भटका हुआ कौआ न जाने कहाँ से उड़कर कड़ी की चौखट पर आ बैठा। उससे लकड़ी के रेशे इधर-उधर छितरा गये। कौए के वहाँ बैठते ने बैठते मलबे के एक कोने में लेटा हुआ कुत्ता गुर्राकर उठा और ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा-- वउ-अउ अऊ-वऊ। कौवा कुछ देर सहमा-सा चौखट पर बैठा रहा, फिर वह पंख फड़फड़ाता हुआ उड़कर कुएँ के पीपल पर चला गया। कौए के उड़ जाने पर कुत्ता और नीचे उतर आया और पहलवान की ओर मुँह करके भौंकने लगा। पहलवान उसे हटाने के लिए भारी आवाज में बोला-- दुर् दुर् दुर् दुरे।

मगर कुत्ता और पास आकर भौंकने लगा-- वउ-अउ-वउ-वउ-वउ।

--हट हट, दुर्रर्र-दुर्रर्र दुरे

वऊ-अऊ- अऊ-अउ-अउ।

पहलवान ने एक ढेला उठाकर कुत्ते की ओर फेंका। कुत्ता थोड़ा पीछे हट गया, पर उसका भौंकना बंद नहीं हुआ। पहलवान मुँह ही मुँह में कुत्ते की माँ को गाली देकर वहाँ से उठ खड़ा हुआ और धीरे-धीरे जाकर कुएँ की सिल पर लेट गया। पहलवान के वहाँ से हटने पर कुत्ता गली में उतर आया और कुएँ की ओर मुँह करके भौंकने लगा। काफ़ी देर भौंक कर जब गली में उसे कोई प्राणी चलता-फिरता दिखायी नहीं दिया तो वह एक बार कान झटककर मलबे पर लौट आया और वहाँ कोने में बैठकर गुर्राने लगा।

National Record 2012

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