अनु० महेन्द्र कुलश्रेष्ठ
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वाह! आप रास्ते में मिल गये! मैं स्वयं आपके पास पहुंचने वाला था। नहीं, कोई खास बात नहीं है। आपसे गपशप करने का मन था। मेरी निगाह कुछ बुझी-सी हो रही है? नहीं जी, ऐसा कुछ नहीं है। आइये, कहीं शराब का एक दौर हो जाय।
मेरी सेहत ठीक है। जी हां, मन कुछ गिरा हुआ-सा है। आप कहते हैं, कभी-कभी घर की याद बेचैन कर देती है। आप जो चाहें, कह सकते हैं। आइये, चलें।
कहां? उसी जगह, जहां आपको याद है न, हम पिछली बार गये थे! मेरा मतलब उस होटल से है, जिसे उत्तरी कोरिया के केंग-गी प्रदेश की रहनेवाली औरत चलाती है।
तो भाई, अगर आज आप मेरी पकड़ में नहीं आये होते तो मैं सड़क पर जो भी मिलता, उसी को पकड़ लेता।
आप सोचते हैं कि मेरी यह सदा की बीमारी है। हां, यह बड़ी बुरी बीमारी है, जो मुझे पिछले बीस साल से घेरे हुए है। लेकिन मैं अकेला ही इससे पीड़ित नहीं हूं।
श्रीमति जी, आप भी थोड़ी देरे के लिए आ जाइये।आप तो केंग-गी प्रदेश की रहनेवाली हैं? यही कारण है कि आपका रंग इतना गोरा है। आप पूछती हैं कि मुझे कैसे पता चला कि आप केंग-गी की हैं? पिछली बार मैं जब यहां आया था तब आपने ही तो बताया था। अच्छा, आपका जन्म वहां हुआ था; लेकिन जब युद्ध छिड़ा तो आप बोनसन में थी और वहां से भागकर दक्षिण चली गईं।
ओफ! हमलोग कितने अभागे हैं! कितने छोटे भूखण्ड में रहते हैं, और फिर भी हमारे आधे प्रियजन अलग रहते हैं! आधा उत्तर और आधा दक्षिण। अपने ही रक्त के संबंधी हैं और बीस साल हो गये,किसी भी पक्ष को इस बात का पता नहीं है कि दूसरा पक्ष सही-सलामत है या नहीं!
मैने बीस साल पहले ३८वीं पैरेलल (सरहद) को पार किया था। मां मेरी वहीं राह गई थीं। उनकी उम्र साठ के आसपास ही रही होगी। मेरी स्त्री और दो बच्चे भी वहीं छूट गये। बच्चों में एक तीन साल का था, दूसरा हाल ही में पैदा हुआ था। मैंने सोचा था कि महीने भर के भीतर लौट जाऊंगा।
मुझे आपसे बड़ी ईर्ष्या होती है।
आप पूछते हो, ईष्या की क्या है? आप यहां बैठकर फैसला दे सकते हैं कि मेरा घर की याद करना व्यर्थ है या आप यह भी कह सकते हैं कि मेरी हालत पर आपको दुख है। आप इन बातों को हंसी में भी उड़ा सकते हैं। आपसे ईष्या करने के लिए क्या इतना ही काफी नहीं है?
आपके लिए या और किसी के लिए मेरे मन में दुर्भाव नहीं है। आपका सारा परिवार दक्षिण में चला गया था और आपके हैरान होने के लिए कोई बात नहीं है। आप यहां बीस साल से रह रहे है। समाज में आपकी अपनी ठोस जमीन बन गई है। आपकी जड़े गहरी चली गई हैं।
बीस साल की अवधि बड़ी लम्बी होती है और इस काल में मेरा हृदय प्रतिदिन छटपटाता रहा कि ऐसा संयोग हो जाय कि मैं अपने कुटुम्बियों को देख कसूं या कम-से-कम उनके विषय में कुछ समाचार पा सकूं।बीस वर्षो में एक दिन भी ऐसा नहीं गया, जबकि मेरा दिल टूक-टूक न हुआ हो।
मेरा एक पड़ोसी था, जिसने टोंगडीमन बाजार में काम करके खूब कमाई कर डाली थी। वह उत्तरी कोरिया के एन्ब्योन प्रदेश का था। वह कहा करता था, "भगवान की किसी दिन हम पर दया होगी। एक दिन आयगा जबकि हम अपने नगर में जायंगे और अपने घरवालों से मिलेगे, नहीं तो ऐसे जीने का फायदा क्या है!"
उसने बीस साल तक ब्रह्मचर्य का पालन किया। उसकी स्त्री उत्तरी कारिया में ही रह गई थी। पिछले साल वह दुर्घटना का शिकार हो गया। मरने से पहले उसने कहा था, "मै प्रभु से कामना करता हूं कि दूसरी दुनिया में ३८वीं पैरेलल न हो" उसका कोई सम्बन्धी यहां नहीं था। वह अकेला था।
क्षमा करेंख्, आज कौनसी ऐसी बात हुई कि अचानक मुझे उसकी याद आ गई? मैं आपको बताऊंगा कि आज वास्तव में हुआ क्या? मेरा एक मित्र है, जिसका नाम है प्योंग-हो वन। आपने शायद उसका नाम सुना होगा। वह पक्षी-विद्या-विशेषज्ञ है। इस देश में वह पक्षियों के विषय में अधिकारी व्यक्ति है। उसका नाम नहीं सुना? खैर, हम दोनों हाई स्कूल में सहपाठी थे।
एक दिन मै उसका हालचाल जानने के लिए उसके घर गया क्यों कि मुझे बहुत दिनों से उसका कोई समाचार नहीं मिला था। उसकी पत्नी ने बताया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है,वह बिस्तर में पड़ा है। मैनें सोचा कि लाओ, उससे मिलता चलूं! उसकी बीमारी गंभीर नहीं थी। यही फ्ल्यू या और कुछ था।
उस पक्षी-विशेषज्ञ मित्र ने कहा कि सालों से उसकी दिलचस्पी इस बात में रही है कि एक खास किस्म के प्रवासी पक्षी किस तरह अपने को बांट कर उड़ते हैं, घर बनाते हैं, प्रवास की उनकी दिशा क्या होती है और उनके स्वभाव की विशेषताएं क्या हैं, इस शोध के लिए पक्षियों के पैरों में डाला जा सके। आप पूछते हैं कि जापान से क्यों बनावाये? इसलिए कि वे इस देश में नहीं बनते थे।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217