मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-17

पेज-166

होरी ने मुस्करा कर कहा - क्यों, उसके बाल-बच्चे नहीं हैं?

'उसके बाल-बच्चों को देखें कि अपने बाल-बच्चों को देखें? वह तो दो-दो मेहरियों को आराम से रखता है, यहाँ तो एक को रूखी रोटी भी मयस्सर नहीं। सारी जमा ले लेगा। एक पैसा भी घर न लाने देगा।'

'मेरी तो हालत और भी खराब है भाई, अगर रुपए हाथ से निकल गए, तो तबाह हो जाऊँगा। गोई के बिना तो काम न चलेगा।'

अभी तो दो-तीन दिन ऊख ढोते लगेंगे। ज्यों ही सारी ऊख पहुँच जाय, जमादार से कहें कि भैया कुछ ले ले, मगर ऊख झटपट तौल दे, दाम पीछे देना। इधर झिंगुरी से कह देंगे, अभी रुपए नहीं मिले।'

होरी ने विचार करके कहा - झिंगुरीसिंह हमसे-तुमसे कई गुना चतुर है सोभा! जा कर मुनीम से मिलेगा और उसी से रुपए ले लेगा। हम-तुम ताकते रह जाएँगे। जिस खन्ना बाबू का मिल है, उन्हीं खन्ना बाबू की महाजनी कोठी भी है। दोनों एक हैं।

सोभा निराश हो कर बोला - न जाने इन महाजनों से कभी गला छूटेगा कि नहीं।

होरी बोला - इस जनम में तो कोई आसा नहीं है भाई! हम राज नहीं चाहते, भोग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना, और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं। वह भी नहीं सकता।

सोभा ने धूर्तता के साथ कहा - मैं तो दादा, इन सबों को अबकी चकमा दूँगा। जमादार को कुछ दे-दिला कर इस बात पर राजी कर लूँगा कि रुपए के लिए हमें खूब दौड़ाएँ। झिंगुरी कहाँ तक दौड़ेंगे।

होरी ने हँस कर कहा - यह सब कुछ न होगा भैया! कुसल इसी में है कि झिंगुरीसिंह के हाथ-पाँव जोड़ो। हम जाल में फँसे हुए हैं। जितना ही फड़फड़ाओगे, उतना ही और जकड़ते जाओगे।

 

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