मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-17

पेज-168

सहुआइन को जाते देर नहीं हुई कि मँगरू साह पहुँचे। काला रंग, तोंद कमर के नीचे लटकती हुई, दो बड़े-बड़े दाँत सामने जैसे काट खाने को निकले हुए, सिर पर टोपी, गले में चादर, उम्र अभी पचास से ज्यादा नहीं, पर लाठी के सहारे चलते थे। गठिया का मरज हो गया था। खाँसी भी आती थी। लाठी टेक कर खड़े हो गए और होरी को डाँट बताई - पहले हमारे रुपए दे दो होरी, तब ऊख काटो। हमने रुपए उधार दिए थे, खैरात नहीं थे। तीन-तीन साल हो गए, न सूद न ब्याज, मगर यह न समझना कि तुम मेरे रुपए हजम कर जाओगे। मैं तुम्हारे मुर्दे से भी वसूल कर लूँगा।

सोभा मसखरा था। बोला - तब काहे को घबड़ाते हो साहजी, इनके मुर्दे ही से वसूल कर लेना। नहीं, एक-दो साल के आगे-पीछे दोनों ही सरग में पहुँचोगे। वहीं भगवान के सामने अपना हिसाब चुका लेना।

मँगरू ने सोभा को बहुत बुरा-भला कहा - जमामार, बेईमान इत्यादि। लेने की बेर तो दुम हिलाते हो, जब देने की बारी आती है, तो गुर्राते हो। घर बिकवा लूँगा, बैल-बधिए नीलाम करा लूँगा।

सोभा ने फिर छेड़ा - अच्छा, ईमान से बताओ साह, कितने रुपए दिए थे, जिसके अब तीन सौ रुपए हो गए हैं?

'जब तुम साल के साल सूद न दोगे, तो आप ही बढ़ेंगे।'

'पहले-पहल कितने रुपए दिए थे तुमने? पचास ही तो।'

'कितने दिन हुए, यह भी तो देख।'

'पाँच-छ: साल हुए होंगे?'

'दस साल हो गए पूरे, ग्यारहवाँ जा रहा है।'

'पचास रुपए के तीन सौ रुपए लेते तुम्हें जरा भी सरम नहीं आती।'

'सरम कैसी, रुपए दिए हैं कि खैरात माँगते हैं।'

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top