मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-17

पेज-171

धनिया सिर से पाँव तक भस्म हो उठी। मन में ऐसा उद्वेग उठा कि अपना मुँह नोंच ले। बोली - तुम जैसा घामड़ आदमी भगवान ने क्यों रचा, कहीं मिलते तो उनसे पूछती। तुम्हारे साथ सारी जिंदगी तलख हो गई, भगवान मौत भी नहीं देते कि जंजाल से जान छूटे। उठा कर सारे रुपए बहनोइयों को दे दिए। अब और कौन आमदनी है, जिससे गोई आएगी? हल में क्या मुझे जोतोगे, या आप जुतोगे? मैं कहती हूँ, तुम बूढ़े हुए, तुम्हें इतनी अक्ल भी नहीं आई कि गोई-भर के रुपए तो निकाल लेते! कोई तुम्हारे हाथ से छीन थोड़े लेता। पूस की यह ठंड और किसी की देह पर लत्ता नहीं। ले जाओ सबको नदी में डुबा दो। सिसक-सिसक कर मरने से तो एक दिन मर जाना फिर भी अच्छा है। कब तक पुआल में घुस कर रात काटेंगे और पुआल में घुस भी लें, तो पुआल खा कर रहा तो न जायगा। तुम्हारी इच्छा हो, घास ही खाओ, हमसे तो घास न खाई जायगी।

यह कहते-कहते वह मुस्करा पड़ी। इतनी देर में उसकी समझ में यह बात आने लगी थी कि महाजन जब सिर पर सवार हो जाय, और अपने हाथ में रुपए हों और महाजन जानता हो कि इसके पास रुपए हैं, तो असामी कैसे अपनी जान बचा सकता है!

होरी सिर नीचा किए अपने भाग्य को रो रहा था। धनिया का मुस्कराना उसे न दिखाई दिया। बोला - मजूरी तो मिलेगी। मजूरी करके खाएँगे। धनिया ने पूछा - कहाँ है इस गाँव में मजूरी? और कौन मुँह ले कर मजूरी करोगे? महतो नहीं कहलाते!

होरी ने चिलम के कई कश लगा कर कहा - मजूरी करना कोई पाप नहीं। मजूर बन जाय, तो किसान हो जाता है। किसान बिगड़ जाय तो मजूर हो जाता है। मजूरी करना भाग्य में न होता हो यह सब विपत क्यों आती? क्यों गाय मरती? क्यों लड़का नालायक निकल जाता?

धनिया ने बहू और बेटियों की ओर देख कर कहा - तुम सब-की-सब क्यों घेरे खड़ी हो, जा कर अपना-अपना काम देखो। वह और हैं जो हाट-बाजार से आते हैं, तो बाल-बच्चों के लिए दो-चार पैसे की कोई चीज लिए आते हैं। यहाँ तो यह लोभ लग रहा होगा कि रुपए तुड़ाएँ कैसे? एक कम न हो जायगा इसी से इनकी कमाई में बरक्कत नहीं होती। जो खरच करते हैं, उन्हें मिलता है। जो न खा सकें, उन्हें रुपए मिलें ही क्यों? जमीन में गाड़ने के लिए?

 

 

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