होरी ने खिलखिला कर कहा - कहाँ है वह गाड़ी हुई थाती? जहाँ रखी है, वहीं होगी। रोना तो यही है कि यह जानते हुए भी पैसे के लिए मरते हो! चार पैसे की कोई चीज ला कर बच्चों के हाथ पर रख देते तो पानी में न पड़ जाते। झिंगुरी से तुम कह देते कि एक रूपया मुझे दे दो, नहीं मैं तुम्हें एक पैसा न दूँगा, जा कर अदालत में लेना, तो वह जरूर दे देता।' होरी लज्जित हो गया। अगर वह झल्ला कर पचीसों रुपए नोखेराम को न दे देता, तो नोखे क्या कर लेते? बहुत होता बकाया पर दो-चार आना सूद ले लेते, मगर अब तो चूक हो गई। झुनिया ने भीतर जा कर सोना से कहा - मुझे तो दादा पर बड़ी दया आती है। बेचारे दिन-भर के थके-माँदे घर आए, तो अम्माँ कोसने लगीं। महाजन गला दबाए था, तो क्या करते बेचारे! 'तो बैल कहाँ से आयँगे?' 'महाजन अपने रुपए चाहता है। उसे तुम्हारे घर के दुखड़ों से क्या मतलब?' अम्माँ वहाँ होतीं, तो महाजन को मजा चखा देतीं। अभागा रो कर रह जाता।' झुनिया ने दिल्लगी की तो यहाँ रुपए की कौन कमी है - तुम महाजन से जरा हँस कर बोल दो, देखो सारे रुपए छोड़ देता है कि नहीं। सच कहती हूँ, दादा का सारा दुख-दलिदर दूर हो जाए। सोना ने दोनों हाथों से उसका मुँह दबा कर कहा - बस, चुप ही रहना, नहीं कहे देती हूँ। अभी जा कर अम्माँ से मातादीन की सारी कलई खोल दूँ तो रोने लगो। झुनिया ने पूछा - क्या कह दोगी अम्माँ से? कहने को कोई बात भी हो। जब वह किसी बहाने से घर में आ जाते हैं, तो क्या कह दूँ कि निकल जाओ, फिर मुझसे कुछ ले तो नहीं जाते? कुछ अपना ही दे जाते हैं। सिवाय मीठी-मीठी बातों के वह झुनिया से कुछ नहीं पा सकते! और अपनी मीठी बातों को महँगे दामों पर बेचना भी मुझे आता है। मैं ऐसी अनाड़ी नहीं हूँ कि किसी के झाँसे में आ जाऊँ। हाँ, जब जान जाऊँगी कि तुम्हारे भैया ने वहाँ किसी को रख लिया है, तब की नहीं चलाती। तब मेरे ऊपर किसी का कोई बंधन न रहेगा। अभी तो मुझे विस्वास है कि वह मेरे हैं और मेरे कारन उन्हें गली-गली ठोकर खाना पड़ रहा है। हँसने-बोलने की बात न्यारी है, पर मैं उनसे विस्वासघात न करूँगी। जो एक से दो का हुआ, वह किसी का नहीं रहता।
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