गोबर घबराया, कहाँ दाई खोजने जाय? इस वक्त वह आने ही क्यों लगी? घर में कुछ है भी तो नहीं। चुड़ैल ने पहले बता दिया होता तो किसी से दो-चार रुपए माँग लाता। इन्हीं हाथों में सौ-पचास रुपए हरदम पड़े रहते थे, चार आदमी खुसामद करते थे। इस कुलच्छनी के आते ही जैसे लच्छमी रूठ गई। टके-टके को मुहताज हो गया। सहसा किसी ने पुकारा - यह क्या तुम्हारी घरवाली कराह रही है? दरद तो नहीं हो रहा है? यह वही मोटी औरत थी, जिससे आज झुनिया की बातचीत हुई थी। घोड़े को दाना खिलाने उठी थी। झुनिया का कराहना सुन कर पूछने आ गई थी। गोबर ने बरामदे में जा कर कहा - पेट में दरद है। छटपटा रही है। यहाँ कोई दाई मिलेगी? 'वह तो मैं आज उसे देख कर ही समझ गई थी। दाई कच्ची सराय में रहती है। लपक कर बुला लाओ। कहना, जल्दी चल। तब तक मैं यहीं बैठी हूँ।' 'मैंने तो कच्ची सराय नहीं देखी, किधर है?' 'अच्छा, तुम उसे पंखा झलते रहो, मैं बुलाए लाती हूँ। यही कहते हैं, अनाड़ी आदमी किसी काम का नहीं। पूरा पेट और दाई की खबर नहीं।' यह कहती हुई वह चल दी। इसके मुँह पर तो लोग इसे चुहिया कहते हैं, यही इसका नाम था, लेकिन पीठ पीछे मोटल्ली कहा - करते थे। किसी को मोटल्ली कहते सुन लेती थी, तो उसके सात पुरखों तक चढ़ जाती थी। गोबर को बैठे दस मिनट भी न हुए होंगे कि वह लौट आई और बोली - अब संसार में गरीबों का कैसे निबाह होगा। राँड़ कहती है, पाँच रुपए लूँगी?तब चलूँगी। और आठ आने रोज। बारहवें दिन एक साड़ी। मैंने कहा - तेरा मुँह झुलस दूँ। तू जा चूल्हे में! मैं देख लूँगी। बारह बच्चों की माँ यों ही नहीं हो गई हूँ। तुम बाहर आ जाओ गोबरधन, मैं सब कर लूँगी। बखत पड़ने पर आदमी ही आदमी के काम आता है। चार बच्चे जना लिए तो दाई बन बैठी!
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