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मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा
दूसरा अध्याय- जलन बुरी बला है
पेज- 12
भाभी—नहीं-नहीं, दिल्लगी की बात नहीं। मर्द सदा के कठकलेजी होते है। उनके दिल में प्रेम होता ही नहीं। उनका जरा-सा सर धमकें तो हम खाना-पीना त्याग देती है, मगर हम मर ही क्यों न जायँ उनको जरा भी परवा नहीं होती। सच है, मर्द का कलेजा काठ का।
पूर्णा—भाभी। तुम बहुत ठीक कहती हो। मर्दो का कलेजा सचमुच काठ का होता है। अब मेरे ही यहॉँ देखों, महीने में कम-सेकम दस-बारह दिन उस मुये साहब के साथ दोरे पर रहते है। मै तो अकेली सुनसान घर में पड़े-पड़े कराहा करती हूँ। वहॉँ कुछ खबर ही नहीं होती। पूछती हूँ तो कहते है, रोना-गाना औरतों का काम है। हम रोंये-गाये तो संसार का काम कैसे चले।
भाभी—और क्या, जानो संसार अकेले मर्दो ही के थामे तो थमा है। मेरा बस चले तो इनकी तरफ ऑंख उठाकर भी न देखू। अब आज ही देखो, बाबू अमृतराय का करतब खुला तो रानी ने अपनी कैसी गत बना डाली। (मुस्कराकर) इनके प्रेम का तो यह हाल है और वहॉँ चार वर्ष से हीला हवाला करते चले आते है। रानी। नाराज न होना, तुम्हारे खत पर जाते है। मगर सुनती हूँ वहॉँ से विरले ही किसी खत का जवाब आता है। ऐसे निमोहियों से कोई क्या प्रेम करें। मेरा तो ऐसों से जी जलता है। क्या किसी को अपनी लड़की भारी पड़ी है कि कुऍं में डाल दें। बला से कोई बड़ा मालदार है, बड़ा सुंदर है, बड़ी ऊँची पदवी पर है। मगर जब हमसे प्रेम ही न करें तो क्या हम उसकी धन-दौलत को लेकर चाटै? संसार में एक से एक लाल पड़े है। और, प्रेमा जैसी दुलहिन के वास्ते दुलहों का काल।
प्रेमा को यह बातें बहुत बुरी मालूम हुई, मगर मारे संकोच के कुछ बोल न सकी। हॉँ, पूर्णा ने जवाब दिया—नहीं, भाभी, तुम बाबू अमृतराय पर अन्याय कर रही हो। उनको प्रेमा से सच्चा प्रेम है। उनमें और दूसरे मर्दो मे बड़ा भेद है।
भाभी—पूर्ण अब मुंह न खुलवाओ। प्रेम नहीं पत्थर करते है? माना कि वे बड़े विद्यावाले है और छुटपने में ब्याह करना पसंद नहीं करते। मगर अब तो दोनो में कोई भी कमसिन नहीं है। अब क्या बूढे होकर ब्याह करेगे? मै तो बात सच कहूंगी उनकी ब्याह करने की चेष्ठा ही नहीं है। टालमटोल से काम निकालना चाहते है। यही ब्याह के लक्षण है कि प्रेमा ने जो तस्वीर भेजी थी वह टुकड़े-टुकड़े करके पैरों तले कुचल डाली। मैं तो ऐसे आदमी का मुँह भी न देखूँ।
प्रेमा ने अपनी भावज को मुस्कराते हुए आते देखकर ही समझ लिया था कि कुशल नहीं है। जब यह मुस्कराती है, तो अवश्य कोई न कोई आग लगाती है। वह उनकी बातचीत का ढंग देखकर सहमी जाती थी कि देखे यह क्या सुनावनी सुनाती है। भाभी की यह बात तीर की तरह कलेजे के पार हो गई हक्का बक्का होकर उसकी तरफ ताकने लगी, मगर पूणा को विश्वास न आया, बोली यह क्या अनर्थ करती हो, भाभी। भइया अभी आये थे उन्होने इसकी कुछ भी चर्चा नही की। मै। तो जानती हूं कि पहली बात की तरह यह भी झूठी है। यह असंभव है कि वह अपनी प्रेमा की तसवीर की ऐसी दुर्गत करे।
भाभी—तुम्हारे न पतियाने को मै क्या करूं, मगर यह बात तुम्हारे भइया खुद मुझसे कह रहे थे। और फिर इसमें बात ही कौन-सी है, आज ही तसवीर मँगा भेजो। देखो क्या जवाब देते है। अगर यह बात झूठी होगी तो अवश्य तसवीर भेज देगे। या कम से कम इतना तो कहेगे कि यह बात झूठी है। अब पूर्णा को भी कोई जवाब न सूझा। वह चुप हो गयी। प्रेमा कुछ न बोली। उसकी ऑंखो सेऑंसुओ की धारा बह निकली। भावज का चेहरा ननद की इस दशा पर खिल गया। वह अत्यंत हर्षित होकर अपने कमरे में आई, दर्पण में मुहँ देखा और आप ही आप मग्न होकर बोली—‘यह घाव अब कुछ दिनों में भरेगा।‘
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