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मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा
दूसरा अध्याय- जलन बुरी बला है
पेज- 11
पूर्णा—यह मिठाइयॉँ रख छोडो उनके वास्ते जिनकी निठुराई पर अभी कुढ़ रही थी। मेरे लिए तो आगरा वाले की दुकान की ताजी-ताजी अमृतियॉँ चाहिए।
प्रेमा—अच्छा अब की उनको चिटठी लिखँगी तो लिख दूँगी कि पूर्णा आपसे अमृतियॉँ मॉँगती है। पूर्णा—तुम क्या लिखोगी, हॉँ, मैं आज का सारा वृतांत लिखूँगी। ऐसा-ऐसा बनाऊँगी कि तुम भी क्या याद करो। सारी कलई खोल दूँगी।
प्रेमा—(लजाकर) अच्छा रहने दीजिए यह सब दिल्लगी। सच मानो पूर्णा, अगर आज की कोई बात तुमने लिखी तो फिर मैं तुमसे कभी न बोलूगी।
पूर्णा—बोलो या न बोलो, मगर मैं लिखूँगी जरूर। इसके लिए तो उनसे जो चाहूँगी ले लूँगी। बस इतना ही लिख दूँगी कि प्रेमा को अब बहुत न तरसाइए।
प्रेमा—(बात काटकर) अच्छा लिखिएगा तो देखूँगी। पंडित जी से कहकर वह दुर्गत कराऊँ कि सारी शरारत भूल जाओ। मालूम होता है उन्होंने तुम्हें बहुत सर चढ़ा रखा है।
अभी दोनों सखियॉँ जी भर कर खुश न होने पायी थीं कि उनको रंज पहुँचाने का फिर सामान हो गया। प्रेमा की भावज अपनी ननद से हरदम जला करती थी। अपने सास-ससुर से यहॉँ तक कि पति से भी, क्रद रहती कि प्रेमा में ऐसे कौन से चॉँद लगे कि सारा घराना उन पर निछावर होने को तैयार रहता है। उनका आदर सब क्यों करते है मेरी बात तक कोइ नहीं पूछता। मैं उनसे किसी बात मे कम नहीं हूँ। गोरेपन में, सुंदरता में, श्रृंगार मे मेरा नंबर उनसे बराबर बढ़ा-चढ़ा रहता है। हॉँ वह पढ़ी-लिखी है। मैं बौरी इस गुण को नहीं जानती। उन्हें तो मर्दो में मिलना है, नौकरी-चाकरी करना है, मुझ बेचारी के भाग में तो घर का काम काज करना ही बदा है। ऐसी निरलज लड़की। अभी शादी नहीं हुई, मगर प्रेम-पत्र आते-जाते है।, तसवीरें भेजी जाती है। अभी आठ-नौ दिन होते है कि फूलों के गहने आये है। ऑंखो का पानी मर गया है। और ऐस कुलवंती पर सारा कुनबा जान देता है। प्रेमा उनके ताने और उनकी बोली-ठोलियो को हँसी में उड़ा दिया करती और अपने भाई के खातिर भावज को खुश रखने की फिक्र में रहती थी। मगर भाभी का मुँह उससे हरदम फूला रहता। आज उन्होंने ज्योही सुना कि अमृतराय ईसाई हो गये है तो मारे खुशी के फूली नहीं समायी। मुसकराते, मचलते, मटकते, प्रेमा के कमरे में पहुँची और बनावट की हँसी हँसकर बोली—क्यों रानी आज तो बात खुल गयी। प्रेमा ने यह सुनकर लाज से सर झुका लिया मगर पूर्णा बोली—सारा भॉँडा फूट गया। ऐसी भी क्या कोई लड़की मर्दो पर फिसले। प्रेमा ने लजाते हुए जवाब दिया—जाओ। तुम लोगों की बला से । मुझसे मत उलझों।
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