मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

छठा अध्याय - मुये पर सौ दुर्रे

पेज- 35

सेठानी—और क्या, चाहे बच्चा हो या बूढ़ी। जब बेराह चलेगी तो सब ही कहेंगे। चुप क्यों हो पंडाइन, इनके लिए अब कोई राह-बाट निकाल दो।
डाइन—जब यह अपने मन की होगयीं तो कोई क्या राह-बाट निकाले। इनको चाहिए कि ये अपने लंबेलंबे केश कटवा डाले। क्या नाम कि दूसरों के घर आना-जाना छोड़ दे। कंधी-चोटी कभी न करें पान न खाये। रंगीन साड़ी न पहनें और जैसे संसार की विधवायें रहती है वैसे रहें।
चौबाइन—और बाबू अमृतराय से कह दें कि यहॉँ न आया करें। इस पर एक औरत ने जो गहने कपड़े से बहुत मालदार न जान पड़ती थी, कहा—चौबाइन यह सब तो तुम कह गयी मगर जो कहीं बाबू अमृतराय चिढ़ गये तो क्या तुम इस बेचारी का रोटी-कपड़ा चला दोगी? कोई विधवा हो गयी तो क्या अब अपना मुँह सी लें।
महराजिन—(हाथ चमकाकर) यह कौन बोला? ठसों। क्या ममता फड़कने लगी?
सेठानी—(हाथ मटकाकर) तुझे किसने बुलाया जो आ के बीच में बोल उठी। रॉँड़ तो हो गयी हो, काहे नहीं जा के बाजर में बैठती हो।
चौबाइन—जाने भी दो सेठानी जी, इस बौरी के मुँह क्या लगती हो।
सेठानी—(कड़ककर) इस मुई को यहॉँ किसने बुलाया। यह तो चाहती है जैसी मैं बेहयास हूँ  वैसा हीसंसार हो जाय।
महराजिन—हम तो सीख दे रही थीं तो इसे क्यों बुरा लगा? यह कौन होती है बीच में बोलनेवाली?
चौबाइन—बहिन, उस कुटनी से नाहक बोलती हो। उसको तो अब कुटनापा करना है।
इस भांति कटूक्तियों द्वारा सीख देकर यह सब स्त्रियाँ यहा से पधारी। महराजिन भी मुंशी बदरीप्रदान के यहॉँ खाना पकाने गयीं। इनसे और छोटी सर्कार से बहुत बनती थी। वह इन पर बहुत विश्वास रखती थी। महराजिन ने जाते ही सारी कथा खूब नमक-मिर्च लगाकर बयान की और छोटी सरकार ने भी इस बात को गॉँठ बॉँध लिया और प्रेमा को जलाने और सुलगाने के लिए उसे उत्तम समझकर उसके कमरे की तरफ चली।
यों तो प्रेमा प्रतिदिन सारी रात जगा करती थी। मगर कभी-कभी घंटे आध घंटे के लिए नींद आ जाती थी। नींद क्या आ जाती थी, एक ऊंघ सी आ जाती थी, मगर जब से उसने बाबू अमृतराय को बंगालियों के भेस में देखा था और पूणा के घर से लौटते वक्त उसको उनकी कलाई परगजरा न नजर आया था तब से उसके पेट में खलबली पड़ी हुई थी कि कब पूर्णा आवे और कब सारा हाल मालूम हो। रात को बेचैनी  के मारे उठ-उठ घड़ी पर ऑंखे दौड़ाती कि कब भोर हो। इस वक्त जो भावज के पैरां की चाल सुनी तो यह समझकर कि पूर्णा आ रही है, लपकी हुई दरवाजे तक आयी। मगर ज्योंही भावज को देखा ठिठक गई और बोली—कैसे चलीं, भाभी?

 

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