मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

छठा अध्याय - मुये पर सौ दुर्रे

पेज- 40

बदरीप्रसाद—ऐसा कदापि नहीं हो सकता। कमलाप्रसाद। तुम आज उसी जमीन के लिए हमारी तरफ से कमेटी में दरखास्त पेश कर दो। हम वहॉँ ठाकुरद्वारा और धर्मशाला बनावायेंगे।
मिस्टर शर्मा—आज अमृतराय साहब के बँगले पर गये थे। वहॉँ बहुत देर तक बातचीत होती रही। साहब ने मेरे सामने मुसकराकर कहा—अमृतराय, मैं देखूँगा कि जमीन तुमको मिले।
गुलजारीलाल ने सर हिलाकर कहा—अमृतराय बड़े चाल के आदमी है। मालूम होता है, साहब को पहले ही से उन्होंने अपने ढंग पर लगा लिया है।
मिस्टर शर्मा—जनाब, आपको मालूम नहीं अंग्रेजों से उनका कितना मेलजोल है। हमको अंग्रेज मेम्बरों से कोई आशा नहीं रखना चाहिए। वह सब के सब अमृतराय का पक्ष करेंगे।
बदरीप्रसाद—(जोर देकर) जहॉँ तक मेरा बस चलेगा मै यह जमीन अमृतराय को न लेने दूँगा। क्या डर है, अगर और ईसाई मेम्बर उनके तरफदार है। यह लोग पॉँच से अधिक नहीं। बाकी बाईस मेबर अपने हैं। क्या हमको उनकी वोट भी न मिलेगी? यह भी न होगा तो मै उस जमीन को दाम देकर लेने पर तैयार हूँ।
झम्मनलाल—जनाब, मुझको पक्का विश्वास है कि हमको आधे से जियादा वोट अवश्य मिल जायँगे।

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     एक बहुत ही उत्तम रीति से सजा हुआ कमरा है। उसमें मिस्टर वालटर साहब बाबू अमृतराय के साथ बैठे हुए कुछ बातें कर रहे है। वालटर साहब यहॉँ के कमिश्नर है और साधारण अंग्रेजों के अतिरिक्त प्रजा के बड़े हितैषी और बड़े उत्साही प्रजापालक है। आपका स्वभाव ऐसा निर्मल है कि छोटा-बड़ा कोई हो, सबसे हँसकर क्षेम-कुशल पूछते और बात करते है। वह प्रजा की अवस्था को उन्नत दशा में ले जाने का उद्योग किया करते है और यह उनका नियम है कि किसी हिन्दुस्तानी से अंग्रेजी में नहीं बोलेगे। अभी पिछली साल जब प्लेग का डंका चारों ओर घेनघोर बज रहा था, वालटर साहब, गरीब किसानों के घर जाकर उनका हाल-चाल देखते थे और अपने पास से उनको कंबल बॉँटते फिरते थे। और अकाल के दिनों मेंतो वह सदा प्रजा की ओर से सरकार के दरबार में वादानुवाद करने के लिए तत्पर रहते है। साहब अमृतराय की सच्ची देशभक्ति की बड़ी बड़ाई किया करते है और बहुधा प्रजा की रक्षा करने में दोनों आदमी एक-दूसरे की सहायता किया करते है।

 

 

 

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