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मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा
छठा अध्याय - मुये पर सौ दुर्रे
पेज- 39
कमला०—(जोर देकर) यह कौन-सी बहादुरी है। अगर आप लोग उनसे विरोध मोल लिया चाहते है। तो सोच-समझ कर लीजिए। उनके लेखों को पढिए, उनको मन में विचारिए, उनका जवाब लिखिए, उनकी तरह देहातो मे जा-जाकर व्याख्यान दीजिए तब जा के काम चलेगा। कई दिन हुए मै अपने इलाके पर से आ रहा था कि एक गॉँव में मैने दस-बारह हजार आदमियों की भीड़ देखी। मैंने समझा पैठ है। मगर जब एक आदमी से पूछा तो मालूम हुआ। कि बाबू अमृतराय का व्याख्यान था। और यह काम अकेले वही नहीं करते, कालिज के कई होनहार लड़के उनके सहायक हो गये है और यह तो आप लोग सभी जानते हैं कि इधर कई महीने से उनकी वकालत अंधाधुंध बढ़ रही है।
गुलजारीलाल—आप तो सलाह इस तरह देते है गोया आप खुद कुछ न करेंगे।
कमलाप्रसाद—न, मैं इस काम में। आपका शरीक नहीं हो सकता। मुझे अमृतराय के सब सिद्वांतो से मेल है, सिवाय विधवा-विवाह के।
बदरीप्रसाद—(डपटकर) बच्च, कभी तुमको समझ न आयेगी। ऐसी बातें मुहँ से मत निकाला करों।
झमनलाल—(कमलाप्रसाद से) क्या आप विलायत जाने के लिए तैयार है?
कमलाप्रसाद—मैं इसमे कोई हानि नहीं समझता।
गुलाजरीलाल—(हंसकर) यह नये बिगडेहैं। इनको अभी अस्पताल की हवा खिलाइए।
बदरीप्रसाद—(झल्लाकर) बच्चा, तुम मेरे सामने से हट जाओ। मुझे रोज होता है।
कमलाप्रसाद को भी गुस्सा आ गया। वह उठकर जाने लगे कि दो-तीन आदमियों ने मनाया और फिर कुसर् पर लाकर बिठा दिया। इसी बीच में मिस्टर शर्मा की सवारी आयी। आप वही उत्साही पुरूष हैं जिन्होंने अमृतराय को पक्की सहायता का वादा किया था। इनको देखते ही लोगो ने बड़े आदर से कुर्सी पर बिठा दिया। मिटर शर्मा उस शहर में म्यूनिसिपैलिटी के सेक्रेटरी थे।
गुलाजारीलाल—कहिए पंडित जी क्या खबर है?
मिस्टर शर्मा—(मूँछो पर हाथ फेरकर) वह ताजा खबर लाया हूँ कि आप लोग सुनकर फड़क जायँगे। बाबू अमृतराय ने दरिया के किनारे वाली हरी भरी जमीन के लिए दरखास्त है। सुनता हूँ वहॉँ एक अनाथालय बनवायेगे।
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