सिंहासन-बत्तीसी एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुँचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा। राजा ने कहा, ‘‘मैं आपके दर्शन करने आया हूँ।’’ इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा, ‘‘जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।’’ राजा विदा होकर अपने नगर में आया।....... पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसे पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया। उसने पुतलियों से पूछा, ‘‘मुझे बताओ, अब मैं क्या करुँ?’’ उन्होंने कहा, ‘‘विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।’’ राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दीखने लगा और पैर भी उखड़ गये। पुतली बोली, ‘‘हे राजन् ! इसी से मैं कहती हूँ कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।’’ अगले दिन राजा उसे ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:
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