सिंहासन-बत्तीसी एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि पाताल में बलि नाम का बहुत बड़ा राजा है। इतना सुनकर राजा ने अपने वीरों को बुलाया और पाताल पहुँचा। राजा बलि को खबर भिजवाई तो उसने मिलने से इंकार कर दिया। इस पर राजा विक्रमादित्य ने दुखी होकर अपना सिर काट डाला। बलि को मालूम हुआ तो उसने अमृत छिड़कवाकर राजा को जिंदा कराया और कहलाया कि शिवरात्रि को आना। राजा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं अभी दर्शन करुँगा।’’ बलि के आदमियों ने मना किया तो उसने फिर अपना सिर काट डाला। बलि ने फिर जिन्दा कराया और उसके प्रेम को देखकर प्रसन्न हो, उससे मिला। बोला, ‘‘हे राजन् ! यह लाल-मूंगा लो और अपने देश जाओ। इस मूंगे से जो माँगोगे, वही मिलेगा।’’ पुतली बोली, ‘‘है राजन्! जो इतना दानी और प्रजा की भलाई करने वाला हो, वह सिंहासन पर बैठे।’’
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