इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़ै बिछोह |
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ ||3||
भावार्थ - एक दिन ऐसा आयगा ही, जब सबसे बिछुड़ जाना होगा |
तब ये बड़े-बड़े राजा और छत्र-धारी राणा क्यों सचेत नहीं हो जाते ?
कभी-न-कभी अचानक आ जाने वाले उस दिन को वे क्यों याद नहीं कर रहे ?
`कबीर' कहा गरबियौ, काल गहै कर केस |
ना जाणै कहाँ मारिसी, कै घरि कै परदेस ||4||
भावार्थ - कबीर कहते हैं -यह गर्व कैसा,जबकि काल ने तुम्हारी चोटी को पकड़ रखा है?
कौन जाने वह तुम्हें कहाँ और कब मार देगा ! पता नहीं कि तुम्हारे घर में ही,
या कहीं परदेश में |
बिन रखवाले बाहिरा, चिड़िया खाया खेत |
आधा-परधा ऊबरे, चेति सकै तो चेति ||5||
भावार्थ - खेत एकदम खुला पड़ा है, रखवाला कोई भी नहीं | चिड़ियों ने बहुत कुछ उसे
चुग लिया है | चेत सके तो अब भी चेत जा, जाग जा ,
जिससे कि आधा-परधा जो भी रह गया हो, वह बच जाय |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217