मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-10

पेज-103

घबड़ा कर बोला - झुनिया ने कुछ कहा? नहीं, गोबर कहाँ गया? उससे कह कर ही गया होगा?

धनिया झुँझला कर बोली - तुम्हारी अक्कल तो घास खा गई है। उसकी चहेती तो यहाँ बैठी है, भाग कर जायगा कहाँ? यहीं कहीं छिपा बैठा होगा। दूध थोड़े ही पीता है कि खो जायगा। मुझे तो इस कलमुँही झुनिया की चिंता है कि इसे क्या करूँ? अपने घर में मैं तो छन-भर भी न रहने दूँगी। जिस दिन गाय लाने गया है, उसी दिन दोनों में ताक-झाँक होने लगी। पेट न रहता तो अभी बात न खुलती। मगर जब पेट रह गया, तो झुनिया लगी घबड़ाने। कहने लगी, कहीं भाग चलो। गोबर टालता रहा। एक औरत को साथ ले के कहाँ जाय, कुछ न सूझा। आखिर जब आज वह सिर हो गई कि मुझे यहाँ से ले चलो, नहीं मैं परान दे दूँगी, तो बोला - तू चल कर मेरे घर में रह, कोई कुछ न बोलेगा, मैं अम्माँ को मना लूँगा। यह गधी उसके साथ चल पड़ी। कुछ दूर तो आगे-आगे आता रहा, फिर न जाने किधर सरक गया। यह खड़ी-खड़ी उसे पुकारती रही। जब रात भीग गई और वह न लौटा, भागी यहाँ चली आई। मैंने तो कह दिया, जैसा किया है, उसका फल भोग। चुड़ैल ने लेके मेरे लड़के को चौपट कर दिया। तब से बैठी रो रही है। उठती ही नहीं। कहती है, अपने घर कौन मुँह ले कर जाऊँ। भगवान ऐसी संतान से तो बाँझ ही रखें तो अच्छा। सबेरा होते-होते सारे गाँव में काँव-काँव मच जायगी। ऐसा जी होता है, माहुर खा लूँ। मैं तुमसे कहे देती हूँ, मैं अपने घर में न रखूँगी। गोबर को रखना हो, अपने सिर पर रखे। मेरे घर में ऐसी छत्तीसियों के लिए जगह नहीं है और अगर तुम बीच में बोले, तो फिर या तो तुम्हीं रहोगे, या मैं ही रहूँगी।

होरी बोला - तुझसे बना नहीं। उसे घर में आने ही न देना चाहिए था।

'सब कुछ कह के हार गई। टलती ही नहीं। धरना दिए बैठी है।'

'अच्छा चल, देखूँ कैसे नहीं उठती, घसीट कर बाहर निकाल दूँगा।'

'दाढ़ीजार भोला सब कुछ देख रहा था, पर चुप्पी साधे बैठा रहा। बाप भी ऐसे बेहया होते हैं।'

'वह क्या जानता था, इनके बीच क्या खिचड़ी पक रही है।'

'जानता क्यों नहीं था? गोबर दिन-रात घेरे रहता था तो क्या उसकी आँखें फूट गईं थीं! सोचना चाहिए था न, कि यहाँ क्यों दौड़-दौड़ आता है।'

'चल, मैं झुनिया से पूछता हूँ न!'

दोनों मँड़ैया से निकल कर गाँव की ओर चले। होरी ने कहा - पाँच घड़ी के ऊपर रात गई होगी।

धनिया बोली - हाँ, और क्या, मगर कैसा सोता पड़ गया है! कोई चोर आए, तो सारे गाँव को मूस ले जाए।

'चोर ऐसे गाँव में नहीं आते। धनियों के घर जाते हैं।'

धनिया ने ठिठक कर होरी का हाथ पकड़ लिया और बोली - देखो, हल्ला न मचाना, नहीं सारा गाँव जाग उठेगा और बात फैल जायगी।

होरी ने कठोर स्वर में कहा - मैं यह कुछ नहीं जानता। हाथ पकड़ कर घसीट लाऊँगा और गाँव के बाहर कर दूँगा। बात तो एक दिन खुलनी ही है, फिर आज ही क्यों न खुल जाय? वह मेरे घर आई क्यों? जाय जहाँ गोबर है। उसके साथ कुकरम किया, तो क्या हमसे पूछ कर किया था?

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top