'तेरे दादा ने क्या कहा?' 'उन्होंने कहा - तुम्हारा धरम कहता हो, तो खोल ले जाओ।' 'तो खोल ले जाय, लेकिन इसी द्वार पर आ कर भीख न माँगे, तो मेरे नाम पर थूक देना। हमारे लहू से उसकी छाती जुड़ाती हो, तो जुड़ा ले।' वह इसी तैश में बाहर आ कर होरी से बोली - महतो दोनों बैल माँग रहे हैं, तो दे क्यों नहीं देते? उनका पेट भरे, हमारे भगवान मालिक हैं। हमारे हाथ तो नहीं काट लेंगे? अब तक अपने मजूरी करते थे, अब दूसरों की मजूरी करेंगे। भगवान की मरजी होगी, तो फिर बैल-बधिए हो जाएँगे, और मजूरी ही करते रहे, तो कौन बुराई है। बूड़े-सूखे और पोत-लगान का बोझ न रहेगा। मैं न जानती थी, यह हमारे बैरी हैं, नहीं गाय ले कर अपने सिर पर विपत्ति क्यों लेती! उस निगोड़ी का पौरा जिस दिन से आया, घर तहस-नहस हो गया। भोला ने अब तक जिस शस्त्र को छिपा रखा था, अब उसे निकालने का अवसर आ गया। उसे विश्वास हो गया, बैलों के सिवा इन सबों के पास कोई अवलंब नहीं है। बैलों को बचाने के लिए ये लोग सब कुछ करने को तैयार हो जाएँगे। अच्छे निशानेबाज की तरह मन को साध कर बोला - अगर तुम चाहते हो कि हमारी बेइज्जती हो और तुम चैन से बैठो, तो यह न होगा। तुम अपने सौ-दो-सौ को रोते हो। यहाँ लाख रुपए की आबरू बिगड़ गई। तुम्हारी कुसल इसी में है कि जैसे झुनिया को घर में रखा था, वैसे ही घर से निकाल दो, फिर न हम बैल माँगेंगे, न गाय का दाम माँगेंगे। उसने हमारी नाक कटवाई है, तो मैं भी उसे ठोकरें खाते देखना चाहता हूँ। वह यहाँ रानी बनी बैठी रहे, और हम मुँह में कालिख लगाए उसके नाम को रोते रहें, यह मैं नहीं देख सकता। वह मेरी बेटी है, मैंने उसे गोद में खिलाया है, और भगवान साखी है, मैंने उसे कभी बेटों से कम नहीं समझा, लेकिन आज उसे भीख माँगते और घूर पर दाने चुनते देख कर मेरी छाती सीतल हो जायगी। जब बाप हो कर मैंने अपना हिरदा इतना कठोर बना लिया है, तब सोचो, मेरे दिल पर कितनी बड़ी चोट लगी होगी। इस मुँहजली ने सात पुस्त का नाम डुबा दिया। और तुम उसे घर में रखे हुए हो, यह मेरी छाती पर मूँग दलना नहीं तो और क्या है! धनिया ने जैसे पत्थर की लकीर खींचते हुए कहा - तो महतो, मेरी भी सुन लो। जो बात तुम चाहते हो, वह न होगी। सौ जनम न होगी। झुनिया हमारी जान के साथ है। तुम बैल ही तो ले जाने को कहते हो, ले जाओ, अगर इससे तुम्हारी कटी हुई नाक जुड़ती हो, तो जोड़ लो, पुरखों की आबरू बचती हो, तो बचा लो। झुनिया से बुराई जरूर हुई। जिस दिन उसने मेरे घर में पाँव रखा, मैं झाड़ू ले कर मारने को उठी थी, लेकिन जब उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे, तो मुझे उस पर दया आ गई। तुम अब बूढ़े हो गए महतो! पर आज भी तुम्हें सगाई की धुन सवार है। फिर वह तो अभी बच्चा है।
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